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२६ : पीयूष घट
श्रेणिक ने मधुर स्वर में कहा : "प्रिय, तुम्हारा यह स्वप्न शुभ है। इस शुभ स्वप्न के तीन महा लाभ निर्बाध होने वाले हैं-पुत्र लाभ, अर्थ लाभ और राज्य लाभ ।" स्वप्न फल सुनकर रानी राजा को वन्दन करके वापिस अपने शयन कक्ष में लौट आई।
योग्य समय पर रानी के पुत्र जन्म ने राजभवन, नगर और देश को मुखरित कर दिया। राजकुमार का नाम मेघकूमार रखा गया। कलाचार्य के पास रहकर मेघकुमार ने अपनी तोब प्रतिभा से समस्त कलाएँ और विद्याएँ सोख लीं। युवा होते ही अनेक सुन्दरी एवं गुणवती राजकन्याओं के साथ मेघ का विवाह हो गया । संसार के विषय सुख में मेघकुमार निमग्न हो गया।
आध्यात्मिक जागरण का आघोष करने वाले प्रभु महावीर राजगृह नगर के गुणशीलक बाग में आकर विराजित हुए । नगर के हजारों जन, दर्शन और अमत वाणी का महालाभ लेने आने लगे। मेघकुमार की मोह निद्रा भंग हुई। वह भी परम प्रभु के पावन चरणों में पहुँच गया । देशना सुनकर भावितात्मा हो गया। उसके मन में यह प्रश्न बिजली की तरह कोंध गया : ___"मुझे किधर जाना चाहिए था, और किधर चल पड़ा हूँ ! मैं एक राह भूला राही था, अब राह बताने वाला मिल गया। यदि अब न सँभला तो फिर कब सँभलूगा ?"
मेघकुमार का जन्म-जन्म का सोया मनुवा गुरु-शब्द सुनकर जाग उठा । जो संसार अभी तक मधुर एवं सुखद था, अब दृष्टि बदलने से ही वही खारा और दुःखद हो गया। महल वही थे, राज-रानियाँ वही थीं, राग-रंग वही सब-ज्यों का त्यों ! परन्तु
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