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नारी का मन : २६
उधर सूर्य उदीयमान था, इधर मेघकुमार भगवान् के चरणों में रात बीती सुनाने पहुँचा। मेघकुमार को आते देख, भगवान् ने स्वयं कहा : "मेघ, रात तुम्हें बड़ी वेदना रही । सुख से निद्रा नहीं आ सकी। आते-जाते भिक्षओं के पैरों की ठोकरों से तुम अधोर हो उठे, और संयम त्याग का संकल्प किया।" मेघकुमार ने सब स्वीकार किया।
भगवान् ने सान्त्वना देते हुए कहा : 'मेघ ! वर्तमान मानव भव से पूर्व, तीसरे भव में और दूसरे भव में तुम गज योनि में थे। वहाँ एक शशक की दया करने के लिए तुमने कितना कष्ट उठाया था, और आज तुम मानव होकर भी, उसमें भी भिक्षु होकर साधारण-से कष्ट से इतना अधीर हो गये । मेघ, सावधान ! अपने को संभालो, वत्स ! अधोर मत हो, समभाव से कष्ट सहन करो। मान-अपमान की तुला पर अपने आपको मत तोल !”
भगवान् की वाणी सुन, मेघकुमार संयम में स्थिर, धीर और अचंचल बन गया और अपना सम्पूर्ण जीवन, संयम और श्रमण सेवा में समर्पित कर दिया।
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