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नारी का मन : २५ "यह क्यों ?" मृगावती ने विनम्र स्वर में कहा : “एक सर्प इधर से निकल रहा था।"
परन्तु रात के घोर अन्धकार में सर्प का बोध तुम्हें कैसे हो गया?"
मृगावती ने शान्त स्वर में कहा : “मुझे अब कहीं पर भी अन्धकार नहीं, सर्वत्र प्रकाश ही प्रकाश दृष्टिगत होता है।" चन्दना ने मृगावती के इस सत्य को स्वीकार किया ।
विश्वास बदला तो विश्व बदला !
मगध जनपद में राजगृह एक शोभित नगर था। वह मगध की राजधानी थी। राजा श्रेणिक और महारानी धारिणी अपने देश और नगर की प्रजा का अपनी निज सन्तान को तरह संरक्षण और संवर्धन करते थे। प्रजा भी श्रद्धा और भक्ति से उनके आदेशों का परिपालन करने में अपना हित समझती थी।
महारानी धारणी सुख निद्रा में सोई थी। स्वप्न में उसने देखा-एक श्वेत गजराज उसके मुख के अन्दर प्रवेश कर रहा है। रानी अपनी शैया से तुरन्त उठ बैठी, और राजा के शयन कक्ष में जाकर सविनय बोली :
"प्राणनाथ, मैंने अभी-अभी यह स्वप्न देखा है । यह शुभ है या अशुभ ! इसका फल क्या है ?"
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