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आर्या चन्दना का उपालम्भ !
कौशाम्बी नगरी में भगवान् महावीर का समवसरण लगा था। मृगावती दर्शन को गई। परन्तु वहाँ विलम्ब हो गया, क्योंकि चन्द्र और सूर्य भी भगवान के दर्शनों को आए थे, अतः समय का पता न लगा । जब मृगावती स्वस्थान को लौटी तो विकाल हो चुका था।
आर्या चन्दना ने मगावती को कहा : "उत्तम कुलोत्पन्न होकर भी तुमने लौटने में विकाल क्यों किया?"
कुलीन नारी को मधुर उपालम्भ भी पर्याप्त होता है। मगावती ने अपनी भूल की विनम्र स्वर में क्षमा माँगी और भविष्य में सजग रहने का संकल्प व्यक्त किया।
आर्या चन्दना सो गई, और मृगावती बैठी-बैठी अपनी भूल का पश्चाताप करती रही । वह सोचने लगी : “मैंने यह भूल क्यों की। मुझे अपने मत में अप्रमत रहना चाहिए।"
शुभ अध्यवसायों की परिणति बढ़ती रही। इतनी बढ़ी कि केवल ज्ञान का दिव्य प्रकाश हो गया।
रात के अंधेरे में एक साँप इधर-उधर घूमता हुआ वहाँ आ निकला । मगावती ने आर्या चन्दना का हाथ धीरे से उठाकर ऊपर कर दिया । निद्रा खुल जाने से चन्दना ने पूछा :
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