________________
वात्सल्य दूध बन कर स्तन से फूट पड़ा!
एक बार भगवान् नेमिनाथ द्वारिका नगरी पधारे । भगवान् के भिक्षु संघ में छह भिक्षु एक जैसे थे । रूप में, रंग में और वय में तुल्य थे। वे छह के छह सहोदर भ्राता थे । सुन्दर, दर्शनीय और कान्त । उनके शरीर के अवयव कमल से भी कोमल थे। देखने वालों को विस्मय होता था ये भोग की वय में योगी और तपस्वी क्यों बन गए ? उन्हें बेला-बेला पारणा करते देख लोगों को आश्चर्य होता था।
पारणे का दिन था। छहों ने दो-दो की टोली बनाकर भगवान् से पारणा लाने की आज्ञा लेकर द्वारिका में प्रवेश किया। गरीब और अमीर, महल और झोपड़ी-सभी में सर्वत्र वे अपनी विधि से भक्त-पान की गवेषणा करते-करते देवकी रानी के महल में क्रमशः कुछ समय के अन्तर के साथ जाते रहे । देवकी ने . हर्ष के साथ विधिवत् उन्हें मोदकों का उदारता से दान दिया। एक बार, दो बार फिर तीसरी बार भी दान करने में देवकी को हर्ष था, उल्लास था । परन्तु एक चिन्ता भी उत्पन्न हो गई। सोचने लगी :
"क्या कारण है, इस विशाल नगरी में जहाँ कृष्ण वासुदेव राज्य करता है, जहाँ बड़े-बड़े सेठ साहूकार रहते हैं, वहाँ भिक्षुओं को भिक्षा नहीं मिलती?"
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org