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१६ : पीयूष घट
हर्ष था। वह संकल्प कर रही थी, “साधूनां दर्शनं, तीर्थभूता हि साधवः।" सुभद्रा की साध आज वर्षों बाद पूरी हुई थी।
सुभद्रा ने सद्गुरु को वन्दन किया और सुख-शान्ति पूछी। सुभद्रा की आँखों से यह छुपा न रह सका कि मुनि की एक आँख में तिनका पड़ा है। सती सुभद्रा ने अपनी जीभ से तिनका निकालने का सत्प्रयत्न किया तो सुभद्रा के तिलक का सिन्दूर मुनि के भाल पर भी लग गया। सास और ननद ने सतो को कलंक लगाने का अवसर हाथ से नहीं खोया। सुभद्रा का पति भी सती पर सन्देह करने लगा और वह घर वालों के दूषित प्रचार से प्रभावित होकर बौद्ध बन गया।
सुभद्रा को अपनी चिन्ता नहीं थी, परन्तु अपने धर्म के अपमान की अधिक चिन्ता थी। सच्चा धार्मिक कभी भी अपने धर्म और संस्कृति का तिरस्कार नहीं सह सकता। जहां अपना घर समझ कर सुभद्रा आई भी, वहीं उस पर सन्देह हुआ। उसे सबने अपने सतीत्व की परीक्षा देने को कहा। ___सती सुभद्रा ने नगर के बन्द द्वारों को खोलकर और छलनी में नीर भरकर अपने सतीत्व का प्रबल प्रमाण उपस्थित करके नगर-जनों की श्रद्धा पुनः प्राप्त की, धर्म-विमुख पति को पुनः धर्मोन्मुख किया, अपने सास, ससुर और ननद को जैन-धर्म में अनुरक्त किया और अपने धर्ममय गौरव को बढ़ाया।
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