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सुभद्रा जीत गई !
चम्पा नगरी में जिनदत्त श्रावक की एक रूपवतो एवं गुणवतो सूपत्री थी। नाम था सुभद्रा। सुभद्रा अपने सद्गणों से आस-पास प्रसिद्ध थी। सुभद्रा जैन थी, और जैन-धर्म में उसे प्रगाढ़ अनुराग था। पिता का संकल्प था, सुभद्रा का विवाह उसी युवा से होगा जो जैन-धर्म में अनुरक्त होगा। ___ एक बौद्ध युवक ने सुभद्रा के अनुपम रूप को देखा, और मुग्ध हो गया । सुभद्रा की सहज सुषमा ने और उसके स्वाभाविक सद्गुणों ने बौद्ध युवक को जैन बनने के लिए मौन प्रेरणा दी। एक आचार्य की सेवा में उपस्थित होकर उसने पांच अणुव्रत अंगीकार कर लिए वह जैन-साधना में इतना सजग था, कि अल्प काल में ही वह प्रसिद्ध श्रावक बन गया।
सुभद्रा के पिता ने उसे जैन-धर्म में अनुरक्त समझकर सुभद्रा का विवाह उस युवा के साथ कर दिया । परन्तु सास और ननद सब बौद्ध थे। वे सब सुभद्रा से द्वेष करने लगे, और उसे बौद्ध बनाने का षड्यन्त्र करने लगे। सुभद्रा अपने धर्म में सदा सजग और सतेज रही। वह अपने धर्म का पालन करती रही। विद्वपी मनुष्य सदा दोष ही देखा करता है।
एक बार एक जिन-कल्पी श्रमण नगर में आये । मेघ गर्जन पर मयूर चुप नहीं बैठ सकता। सुभद्रा के मानस में अपार
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