________________
१० : पीयूष घट
"भंते, क्या मैं अपने कालीकुमार को देख सकूँगी ? वह अब कहाँ पर है ?" काली ने जिज्ञासा भरी दृष्टि से भगवान की ओर देखा ।
भगवान् ने यथार्थवाद उसके सामने रखा : "काली, अब तू कालीकुमार को नहीं देख सकेगी। वह युद्ध में राजा चेटक के तीव्र प्रहार से मर गया है, और अब पंक प्रभा में नारक बन चुका है ।"
काली रानी का संसार कालीकुमार के बिना सूना हो चुका था । राजमहल में अब उसका मन नहीं लगता । सब रागरंग फीके लगने लगे । कालो के मन ने मोड़ लिया : "जिस संसार में मेरा पुत्र नहीं रहा, वहाँ मैं भी न रहूँगी।" कोणिक से अनुमति लेकर वह श्रमणी बन गई ।
चन्दन वाला की सेवा में रहकर काली ने ग्यारह अंगों का अध्ययन किया । संयम और कठोर तप की साधना से अपने जीवन को साध लिया । काली रानी जितनी कोमल थी, साधना में उतनी कठोर भी रही । नारी में आसक्ति भी अत्यन्त है, और त्याग भी अद्भुत तथा अनुपम है । काली ने गुरणी की आज्ञा से रत्नावली तप की एकाग्रता से साधना की और अन्त में सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो गयी ।
- निरयावलिया अ० १, अन्त कृ० वर्ग ८, स० १/
Jain Education International
★
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org