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जाती है। तुम्हारे दिमाग का कंप्यूटर और अधिक सूचनाएं एकत्रित करता चला जाता है। और जब कभी किन्हीं परिस्थितियों में तुम्हें उसकी आवश्यकता होगी, तो तुम उन्हें भूल जाओगे। और अगर वह तुम्हारे होने का, तुम्हारे अस्तित्व का हिस्सा बन जाती हैं, तब तुम स्मृति की तरह कार्य नहीं करोगे, उस समय अपनी समझ का उपयोग करोगे। उस समय मुझे भूल जाओगे। जब -कोई ऐसी परिस्थिति न होगी और तुम लोगों के साथ विवाद या तर्क कर रहे होगे, तो वे बातें तुम्हें स्मरण रहेंगी।
थोड़ा ध्यान देना। अगर मेरी बातें केवल तुम्हारी स्मृति का हिस्सा मात्र हैं, तो फिर वे विवाद के लिए, तर्क के लिए, विचार -विमर्श करने के लिए ठीक हैं। लोगों के सामने तुम्हारे ज्ञान का प्रदर्शन हो जाएगा, और वे समझेंगे कि तुम बड़े ज्ञानी हो, तुम बहुत कुछ जानते हो -तुम अन्य लोगों की अपेक्षा अधिक जानते हो। दिखावे के लिए, प्रदर्शन के लिए, लोगों को यह बताने के लिए कि तुम बहुत कुछ जानते हो, इसके लिए तो यह ठीक है।
लेकिन जीवन की वास्तविक परिस्थिति में. अगर प्रेम के बारे में बातचीत कर रहे हो, तो जो कुछ मैंने तुमसे कहा तुम अपनी स्मृति का उपयोग करके बहुत कुछ कह सकोगे, लेकिन जब ऐसी परिस्थिति आ जाएगी कि तुम किसी के प्रेम में पड़ गए हो-उस समय तुम अपनी ही समझ से प्रेम कर सकोगे। जो कुछ सुना है, उसके द्वारा नहीं। क्योंकि जब भी कभी कोई ऐसी परिस्थिति आ जाती है, तो कोई भी व्यक्ति मृत-स्मृति के माध्यम से कार्य नहीं कर सकता है, उस समय तो सहज - स्फुरणा ही काम आती है।
मैंने एक कथा सुनी है
एक दिन एक अन्वेषक जंगल में भटकते - भटकते एक नरभक्षी जनजाति से मिला। उस समय वे लोग अपनी पसंद का भोजन करने की तैयारी में थे। आश्चर्य की बात यह थी कि उस आदिवासी
जाति का जो मुखिया था, वह बहुत ही अच्छी अंग्रेजी बोल रहा था। जब उससे इसका कारण पूछा गया; तो उस मुखिया ने बताया कि वह अमरीका के एक कॉलेज में एक वर्ष तक रहा है।
'आप कॉलेज में पढ़ चुके हैं, वह अन्वेषक थोड़ा आश्चर्य से बोला, 'और फिर भी आप अभी तक मनुष्य का मांस खाते हैं।'
'हां, मैं अभी भी मनुष्य का मांस खाता हूं, 'मुखिया ने स्वीकार किया। फिर वह शांत और संतुष्ट स्वर में बोला, 'लेकिन निस्संदेह, अब मैं मांस खाने में काटे और छरी का उपयोग करता है। ऐसा ही होगा, अगर तुम मुझे अपनी स्मृति का हिस्सा बना लोगे तुम फिर भी नरभक्षी के नरभक्षी ही रहोगे लेकिन अब तुम काटे -छुरियों का उपयोग करने लगोगे। केवल इतना ही फर्क होगा एकमात्र अंतर। लेकिन अगर तुम मुझे अपने अस्तित्व के अंतर्गृह में प्रवेश करने देते हो, मुझे समग्र रूपेण सुनते हों-यही