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लेट जाता है। पत्नी जब प्रसव पीड़ा के कारण चीखना -चिल्लाना शुरू करती है तो पति भी उसके साथ चीखने चिल्लाने लगता है।
जब पहली बार उन आदिम जनजाति की यह बात पता चली तो लोगों को विश्वास ही नहीं हुआ। पति क्यों चीख - चिल्ला रहा है और किसलिए चिल्ला रहा है? पत्नी तो प्रसव की पीड़ा से गुजर ही रही है, लेकिन पति को क्या हो रहा है? क्या वह केवल अभिनय कर रहा है? और फिर इस बात को लेकर बहु सी खोजें की गईं और उन खोजों में यह पता चला कि पति अभिनय नहीं करता। जब पत्नी की पीड़ा के साथ पति का तादात्म्य स्थापित हो जाता है, तो सच में ही उसे भी पीड़ा होने लगती है। हजारों वर्षों से आदिवासियों की उस जनजाति का मन इसी तरह से तैयार हो चूंकि पत्नी और पति दोनों ही बच्चे के माता - पिता हैं, तो दोनों को ही पीड़ा उठानी चाहिए।
है कि
उनकी बात एकदम ठीक मालूम होती है नारी मुक्ति आंदोलन को इस आदिम जनजाति से सहमत होना चाहिए। केवल स्त्रियां ही प्रसव पीड़ा को क्यों उठाएं? और पति हैं कि इसी तरह जीए चले जाते हैं, वे पीड़ा क्यों नहीं उठाते? वे नौ महीने तक बच्चे को गर्भ में नहीं पालते, और फिर जब बच्चा पैदा होता है तो पूरी जिम्मेवारी मा की ही होती है। ऐसा क्यों?
लेकिन आदिवासियों की वह जनजाति इसी तरह से रह रही है। मनस्विद और चिकित्सकों ने वहां के पुरुषों का परीक्षण किया है और उन्होंने पाया कि सच में पुरुष को पीड़ा होती है सच में हमें यह बात अविश्वसनीय लगती है, क्योंकि हम उस ढंग से तादात्म्य स्थापित नहीं कर पाते। पति अपनी पत्नी के साथ इतना अधिक तादात्म्य बना लेता है – इस तादात्म्य भाव से ही वह पीड़ा उठा रही है पति को पीड़ा शुरू हो जाती है।
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तुमने शायद कभी इस पर ध्यान भी दिया होगा। अगर तुम किसी के अत्यधिक प्रेम में हो और वह व्यक्ति किसी पीड़ा में या दुख में है तो तुम भी पीड़ित और दुखी होने लगते हो। यही है समानुभूति । अगर तुम्हारा प्रेमी पीड़ा में है, तो तुम्हें पीड़ा होने लगती हैं। अगर तुम्हारा प्रेमी सुखी है, आनंदित है,
तो
तुम भी सुखी और आनंदित हो जाते हो। तुम्हारा अपने प्रेमी के साथ तालमेल हो जाता है, उसके साथ संगति बैठ जाती है उसके साथ तुम्हारा तादात्म्य स्थापित हो जाता है।
उस जनजाति की यह बात हमें बहुत ही बेतुकी मालूम होती है, और वह समाज इसी भांति जी रहा है। और पति सच में पत्नी जितना ही पीड़ा को उठाता है, दोनों की पीड़ा में कोई अंतर नहीं होता। फ्रास के एक मनस्विद ने अब स्त्रियों की पीड़ा पर भी बहुत गहन रूप से कार्य करके इस बात पर प्रकाश डाला है कि स्त्रिया अगर प्रसव पीड़ा से गुजर रही हैं तो केवल इसलिए, क्योंकि वे पीड़ा में विश्वास करती हैं। ऐसी जनजातियां भी हैं जहां पत्नी को जरा भी प्रसव पीड़ा नहीं होती।
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भारत में ऐसी जनजातियां हैं, आदिवासियों के समाज हैं जहां पत्नी खेत में काम कर रही है, लकड़िया काट रही है, लकड़ियां उठा रही है और अचानक इसी बीच बच्चे का जन्म हो जाता है। वह