Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 04
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 437
________________ अभी तक निर्मित नहीं हुआ था। अभी भाषा सीखनी शेष थी, अभी चीजों को पहचानना शेष था, उन पर लेबल चिपकाने थे। जब तक तुम किसी चीज पर लेबल नहीं चिपका देते हो, तब तक तुम्हें उसका स्मरण नहीं रहता। तो चार वर्ष की आय के पूर्व का स्मरण कैसे रहे? अपने मन के किसी कोने में तुम उनको .संचित नहीं कर सकते हो। तुम्हारे पास उसका कोई नाम नहीं होता है, तो पहले तो नाम सीखना होता है, तब फिर कहीं उसकी स्मृति रह सकती है। बच्चा बिना मन के जन्म लेता है। मैं इस बात पर इतना जोर क्यों दे रहा हूं? तुम्हें यह बताने के लिए कि तुम मन के बिना भी इस अस्तित्व में रह सकते हो; इसके लिए मन की कोई आवश्यकता भी नहीं है। मन तो केवल मात्र एक ढांचा है जो समाज के लिए उपयोगी है, लेकिन मन के उस ढांचे के साथ बहुत अधिक तादात्म्य मत बना लेना। निर्मुक्त और खुले हए रहना ताकि तुम समाज के इस ढांचे के बाहर निकलकर आ सको। यह कठिन है, लेकिन अगर तुम मन से धीरे – धीरे बाहर आने लगो तो एक न एक दिन तुम मन से मुक्त होने में सक्षम हो जाओगे। जब तुम आफिस से घर आओ, तो रास्ते में ही आफिस को पूरी तरह से भूल जाने की कोशिश करना। और इस बात का स्मरण कर लेना कि अब तुम घर जा रहे हो, घर पर आफिस को साथ ले जाने की कोई जरूरत नहीं है। कोशिश करना कि आफिस का स्मरण न रहे। जब भी आफिस की याद घर पर आए उस समय अपने को झकझोर लेना और तुरंत सचेत हो जाना, और उस याद से बाहर आ जाना। इस बात को खयाल में रख लेना कि घर में रहकर घर में ही रहना है। और आफिस जाकर घर को भूल जाना। पत्नी, बच्चे, सभी कुछ भूल जाना। इस तरह धीरे – धीरे तुम्हें मन का उपयोग करना सीखना है, न कि मन त्म्हारा उपयोग करे। हम सो जाते हैं और मन का काम जारी रहता है। हम बार-बार कहें भी कि ठहरो! लेकिन मन सुनता ही नहीं है। क्योंकि हमने मन को प्रशिक्षित ही नहीं किया है हमारी बात सुनने के लिए। अन्यथा जैसे ही उससे कहो ठहरो! तो उसे ठहरना ही चाहिए। क्योंकि मन एक यंत्र है। यंत्र 'नहीं' नहीं कह सकता! जब हम पंखा चलाते हैं, तो उसे चलना ही पड़ता है, हम जब पंखा बंद करते हैं, तो वह ठहर जाता है। जब हम पंखा बंद करते हैं, तो पंखा 'नहीं ' नहीं कह सकता, वह नहीं कहता कि मैं तो थोड़ी देर और चलूंगा। हमारा मन एक बायो कंप्यूटर है। मन एक बहुत ही सूक्ष्म यांत्रिक संरचना है, इसका उपयोग तो है, लेकिन एक गुलाम की तरह, मालिक की तरह नहीं। तो थोड़ा और सजग हो जाओ, चीजों को और सजगता से देखने की कोशिश करो। अगर हो सके तुम हर रोज कुछ क्षण या कुछ घंटे अ -मन के बिना व्यतीत करना। कभी नदी में तैरने के लिए जाओ तो जब अपने वस्त्र उतारो तो वहीं कहीं मन को भी छोड़ देना। असल में तुम मन को भी वस्त्रों के साथ छोड़ने की भाव मुद्रा बना लेना। और तब होशपूर्वक, सजगता के साथ, और निरंतर स्मरण के

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