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कि उसकी भीतरी अनुभूति कैसी है। केंद्रित हो जाओ, और वहा से चारों ओर देखो - और तब समस्त रहस्यों के पर्दे तुम्हारे सामने खुलते चले जाएंगे। इसी तरह से योगी - कहा से शरीर से बाहर जाया जा सकता है और कैसे फिर से शरीर में प्रवेश हो सकता है, और कैसे दूसरे के शरीर में प्रवेश कर सकते हैं - ऊर्जा के मार्ग, केंद्र, नाड़ियों और ऊर्जा क्षेत्रों की क्रियाओं के विषय में जान सके।
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इसके लिए आंतरिक शरीर विज्ञान का ज्ञान होना आवश्यक है। अगर आंतरिक शरीर विज्ञान का ज्ञान न हो, तो इसे नहीं जाना जा सकता ऐसा बहुत बार हो चुका है।
इसीलिए पतंजलि सूत्र दे देते हैं, उसके विस्तार में नहीं जाते, क्योंकि अगर विस्तार से व्याख्या हो जाए तो ऐसे मूड लोग हैं जो इसे करने के प्रयास में लग जाएंगे। इसीलिए इन सूत्रों में अंतर - विज्ञान के कोई विवरण नहीं दिए गए हैं। इन सूत्रों को पढ़ने मात्र से कुछ नहीं किया जा सकता। सच तो यह है जो भी व्यावहारिक और वास्तविक विवरण हैं, उन्हें तुम्हारे सामने खोला ही नहीं गया है। पतंजलि ने उन्हें छिपाकर रखा है।
वे विवरण केवल उनके लिए हैं जो सदगुरु के साथ काम कर रहे हैं उन्हें सबके बीच नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि कुछ लोग ऐसे भी हैं जो जिज्ञासा से भरे हुए हैं, और वे जिज्ञासावश इसका प्रयोग करने लगेंगे और कभी ऐसा भी संभव हो सकता है कि प्रयोग करते समय वे शरीर से बाहर निकल जाएं, लेकिन फिर वे शरीर के भीतर प्रवेश नहीं कर पाएंगे या कभी वे दूसरे के शरीर में प्रवेश कर जाएं और फिर संभव है कि बाहर न आ पाएं। तब वे स्वयं के लिए और दूसरे के लिए भी समस्या खड़ी कर देंगे।
इसलिए इस बारे में विस्तार से कुछ नहीं बताया गया है; सदगुरु और शिष्य की अंतरंगता में ही इन्हें शिष्य को सौंपा गया है। यह सूत्र तो केवल इशारे मात्र हैं।
'उदना ऊर्जा – प्रवाहिनी को सिद्ध करने से योगी पृथ्वी से ऊपर उठ पाता है और किसी आधार, किसी संपर्क के बिना पानी, कीचड़, काटो को पार कर लेता है।"
जब पहली बार एस्किमो जाति के बारे में पता चला, तो पता लगाने वाले यह जानकर बड़े हैरान हु यह कि बर्फ के लिए उन लोगों के पास करीब-करीब एक दर्जन शब्द हैं- एक दर्जन ! उन्हें भरोसा ही नहीं आया कि एक दर्जन शब्दों की जरूरत भी हो सकती है। 'स्नो' शब्द काफी है। या ज्यादा से ज्यादा एक शब्द और हो सकता है – 'आइस, 'वह फिर भी ठीक है। लेकिन एस्किमो लोगों के पास
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बर्फ के लिए लगभग एक दर्जन शब्द तो हैं ही और उससे अधिक शब्द भी हो सकते हैं। वे बर्फ में ही जीते हैं, बर्फ के अनेक रंग-रूप देखते हैं। वे उसे कई-कई ढंग से जानते हैं। जो व्यक्ति उष्ण- प्रदेश में रहता है, वह तो इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकता कि बर्फ के लिए एक दर्जन शब्दों की क्या आवश्यकता है।