Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 04
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 487
________________ अगर खजुराहो या पुरी के मंदिरों को जाकर देखो तो तुम वहां इतने बड़े -बड़े स्तनों वाली मूर्तिया देखोगे, जो कि असंभव सी प्रतीत होती हैं। इतने बड़े स्तनों को लेकर आखिर स्त्रियां चलती कैसे होंगी! उन स्तनों का वजन ही इतना अधिक है। लेकिन इससे इस बात का ही पता चलता है कि पुरुष फिर से पीछे लौटकर मां की तलाश कर रहा है, वह फिर से मां को ही खोज रहा है। तब फिर अगर तुम्हारा प्रेम जीवन अस्त-व्यस्त हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं। क्योंकि जो स्त्री तुम्हें प्रेम कर रही है, वह किसी बच्चे की तलाश में नहीं है। स्त्री को एक प्रेमी की, प्रियतम की, दोस्त की तलाश होती है। वह तम्हारी मा नहीं बनना चाहती। वह तम्हारी मित्र, तम्हारी संगिनी, तम्हारी पत्नी बनना चाहती है। और तुम उस स्त्री से मां बनने की मांग कर रहे होते हो। वह तुम्हारी देखभाल करे, ऐसे खयाल रखे जैसे कि तुम्हारी मां रखती थी। और तुम स्त्री से मां की ही अपेक्षा निरंतर किए चले जाते हो, और वह इस बात को पूरा नहीं कर पाती है। और फिर इसी कारण पतिपत्नी के संबंधों में दवंदव खड़ा हो जाता है। पीछे लौटना किसी के लिए संभव नहीं है। जो बीत गया सो बीत गया। अतीत तो अतीत ही है, उसे फिर से नहीं लौटाया जा सकता। यही समझ कि अतीत को लौटाना संभव नहीं है, व्यक्ति को विकसित होने में, आगे की यात्रा में सहयोगी होती है। तब व्यक्ति अतीत की मांग नहीं करता, अतीत के पीछे नहीं भागता है। और स्मरण रहे, अगर तुम अतीत से चिपके रहोगे तो तुम भविष्य को भी पकड़ोगे। और तुम्हारा भविष्य तुम्हारे अतीत के थोड़े -बहुत संशोधन के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। और भविष्य में तुम जिन खुशियों की कामना करते हो, वह अतीत के दुखों को छोड़कर अतीत की खुशियों से ही जुड़ी होती हैं। तुम्हारा भविष्य तुम्हारे अतीत का ही नया रूप है, उसके अतिरिक्त और कुछ नहीं है। तुम्हारा भविष्य हृदय की आकांक्षाओं के ज्यादा करीब होता है, उसमें अतीत की दुख और पीड़ा तो भूल जाती है, और सुख और खुशी की बातों का खयाल बढ़-चढ़कर रह जाता है। जब अतीत गिर जाता है तो भविष्य भी गिर जाता है, क्योंकि वह अतीत का ही नया रूप होता है। और जब अतीत और भविष्य दोनों गिर जाते हैं, तो व्यक्ति वर्तमान के क्षण में, अभी और यहीं में ठहर जाता है। फिर अगर मैं तुमसे कहूं, 'बगीचे में सरू का वृक्ष लगा है, उसकी ओर देखो जरा!' या फिर मैं अपने हाथ में फूल ले लूं और तुम उसे देखो। और अगर तुम उसे केवल वर्तमान के क्षण में, अभी और यहीं देख सको तो एक रहस्यपूर्ण घटना भीतर घटने लगती है तब उस फूल को देखते-देखते तुम्हारे भीतर का फूल खिलने लगता है। तुम्हारे तन, मन, आत्मा पर कुछ आच्छादित होने लगता है -कुछ ऐसा जो अस्तित्व से आया होता है। वह कोई स्वप्न नहीं होता है। उसमें कुछ भ्रम नहीं होता है।

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