Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 04
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 497
________________ मैं भी तुम्हारी तैयारी से राजी नहीं, लेकिन मैं तुम्हारे विश्वास की कद्र करता हूं। मैं मानता हूं, प्यास जाग गयी है। अच्छा है। लेकिन प्यास स्वयं में पर्याप्त तैयारी नहीं होती। प्यास तो प्रारंभ है, लेकिन अंत नहीं। उसे मौन में बढ़ने दो, धैर्य से विकसित होने दो, और एक गहरे सहज -स्फूर्त प्रवाह में उसे विकसित होने दो। जल्दी मत करो। धीरे -धीरे बढ़ना, मेरे साथ बहने की कोशिश करना। और मुझसे आगे निकलने की कोशिश मत करना-वह तो संभव ही न होगा। छठवां प्रश्न: प्यारे भगवान आपके साथ मुझे शांति मिलती है। लेकिन फिर भी यह कैसे हो कि बंदर की तरह उछल-कूद करने वाला यह मन पुराने के साथ नाता तोड़ ले ताकि नए के साथ चल सके? - माइकल स्टुपिड। अच्छा है, बहुत अच्छा है। यह 'माइकल वाइज' से ज्यादा अच्छा है। तुम ज्यादा बुद्धिमान हो रहे हो, अपनी मूढता को स्वीकार कर लेना बुद्धिमता की ओर बढ़ने का पहला एक कदम है। लेकिन होशियार बनने की कोशिश मत करो। तुम मुझे धोखा नहीं दे सकते, क्योंकि अगला प्रश्न फिर माइकल वाइज का है। अगला प्रश्न: प्यारे भगवान आपके साथ बड़ी शांति मिली। अगर किसी ने लाओत्सु से संन्यास लेने के लिए पूछा होता तो उनका उत्तर होता : 'क्या! संसार के और खंड करने हैं? फूलों की कोई यूनिफार्म नहीं होती; और क्या सूर्योदय सुंदर नहीं है?' या. 'अगर कोई इतना पागल है कि तुम्हारा मन ले ले तो दे दो उसे या 'फूल ने तो उत्तर दे ही दिया; मेरी कोई जरूरत नहीं' - माइकल वाइज ( स्टुपिड)

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