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/फर से माइकल वाइज, अब 'स्टुपिड ' ब्रैकेट में लिखा है। तो तुम तुम्हारी बुद्धिमता से तो गिर
ही गए।
और तुम कोई लाओत्सु नहीं हो। अगर तुम होते, तो पहली तो बात यही कि तुम यहां होते ही नहीं। फिर तुम यहां क्या करते?
और मैं तुमसे एक बात कहता हं. अगर मैं लाओत्स से ऐसा कहं, तो वह संन्यास ले लेंगे। लेकिन मैं उनसे कहने वाला नहीं। कहने का अर्थ क्या है? क्यों के आदमी को परेशान करना?
आठवां प्रश्न. आप मेरे गुरु नहीं हैं लेकिन फिर भी आप मेरे मार्गदर्शक हैं। आप और मैं एक जैसा सोचते हैं एक जैसी अनुभूति है हमारी? आप जो कुछ भी कहते हैं मुझे ऐसा लगता है जैसे मैं पहले से ही जानता हूं; आप तो उसे स्मरण रखने में मेरी मदद कर रहे हैं। मैं बहुत वर्षों से आपको सुन रहा हूं और मैं आपके साथ पूरी तरह से समानुभूति अनुभव करता हूं अगर ऐसी बात है तो मेरा आपके साथ ठीक-ठीक संबंध क्या है?
मुझे लगता है तुम मेरे गुरु हो।
नौवां प्रश्न:
भगवान आपने बहुत बार अपने प्रवचनों में कहा है कि 'मत सोचना कि तुम अपने से यहां आ गए हो। मैने जाल फेंका है और तुम्हें चुना है ' मैं जानता हूं यह सच है लेकिन आप यह कैसे जान लेते हैं कि कोई उसे ग्रहण करने के लिए तैयार है जिसे आप करुणावश बांटना चाहते हैं?
मैं बहुत छोटी उम से पंद्रह साल की उम से आत्म-बोध पाने के लिए तड़पता रहा और मुझे सदगुरु की तलाश रही वही तलाश मुझे डिवाइन लाइफ सोसायटी के स्वामी शिवानंद संत लीलाशाह और साधु वासवानी के पास ले गई जिनसे मुझे कुछ ज्ञान- रत्न भी मिले लेकिन फिर भी आत्म- बोध का कोहिनूर वहां नहीं मिला। मैने राधास्वामी को चिन्मयानंद को डोगरे महाराज को और स्वामी अखंडानंद को सुना- लेकिन फिर भी आत्म-बोध की प्राप्ति कहीं नहीं हुई
मैने चार-पांच साल पूर्व आपके कुछ प्रवचन सुने थे और जुहू बीच पर आपके संन्यासियों के साथ कुछ ध्यान भी किए थे और वे मुझे अच्छे भी लगे थे लेकिन वे मुझे पूरी तरह से आपकी ओर नहीं खीच पाए ऐसा तो अभी पिछले साल ही हआ मैं आपके पास आलोचक की भांति आया था। लेकिन