Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 04
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 492
________________ तो फिर क्या करोगे? पहली बात, जब तुम ध्यानपूर्वक देखने का प्रयास करो, तो पहली बात पतंजलि जो कहते हैं वह है : दृश्य पर एकाग्रता लाओ, द्रष्टा पर एकाग्रता मत लाओ। दृश्य से शुरू करना - धारणा, एकाग्रचित्तता । वृक्ष को देखते समय वृक्ष ही रह जाए। तुम स्वयं को पूरी तरह भूल जाओ, तुम्हारी कोई आवश्यकता भी नहीं है। वृक्ष को, हरियाली को, गुलाब को देखने में तुम्हारी मौजूदगी बाधा बनेगी। जब गुलाब को देखो, तो बस गुलाब ही रह जाए। उस समय तुम स्वयं को पूरी तरह से भूल जाना - तुम्हारा पूरा ध्यान गुलाब पर केंद्रित रहे। गुलाब ही बच रहे द्रष्टा नहीं बचे केवल दृश्य ही बचे। यह है संयम का प्रथम चरण । फिर दूसरा चरण गुलाब को हटा देना, गुलाब पर ध्यान मत देना। अब गुलाब की चेतना पर ध्यान केंद्रित करना लेकिन अभी भी कोई द्रष्टा की आवश्यकता नहीं है, केवल मात्र यह बोध चाहिए कि तुम देख रहे हो, कि तुम देखने वाले हो । और केवल तभी तीसरे चरण में प्रवेश हो सकता है, जो तुम्हें उसके करीब ले आएगा जिसे गुर्जिएफ ने स्व-स्मरण कहा है, या जिसे कृष्णमूर्ति जागरुकता कहते हैं, या उपनिषद जिसे साक्षीभाव कहते हैं। लेकिन पहले दो चरणों को संपन्न करना ही पड़ता है; तभी तीसरे चरण में प्रवेश हो सकता है। तीसरे से प्रारंभ मत करना। पहले दृश्य, फिर चेतना, फिर उसके पश्चात द्रष्टा । जब दृश्य जाता है और चेतना पर कोई तनाव नहीं रहता, तब द्रष्टा तो होता है, लेकिन कोई दृश्य नहीं बचता। व्यक्ति होता है, लेकिन कोई 'मैं' नहीं बचता, बस व्यक्ति का अस्तित्व होता है। व्यक्ति होता है, लेकिन 'मैं' हूं, ऐसी कोई अनुभूति नहीं होती है। 'मैं' की सीमा खो जाती है, केवल होना अस्तित्व रखता है वही होना ईश्वरीय होता है। मैं को गिरा देना और केवल होने का अस्तित्व रहने देना । और अगर तुम बहुत लंबे समय से साक्षीभाव पर काम कर रहे हो, तो कुछ महीने, कम से कम महीने के लिए इसे बिलकुल बंद कर दो, इसके साथ और काम मत करना। अन्यथा जो पुराना ठर्रा, नई जागरूकता को नष्ट कर सकता है। तुम तीन महीने का अंतराल दे दो। और तीन महीने तक तुम रेचन वाली ध्यान विधियों को करो सक्रिय, कुंडलिनी, नटराज इस प्रकार की विधियां जिनमें सारा जोर कुछ करने पर है और वह करना तुम्हारे लिए महत्वपूर्ण होगा। नृत्य करो नृत्यकार की अपेक्षा नृत्य महत्वपूर्ण होता है। नृत्यकार को तो स्वयं को नृत्य में पूरी तरह छोड़ देना होता है। तो तीन महीने के लिए साक्षी भाव को भूल जाओ और किसी गतिशील ध्यान में डूब जाओ यह साक्षी भाव से एकदम अलग है। किसी चीज में डूबने का मतलब है स्वयं को पूरी तरह से भुला देना, उसमें पूरी तरह से डूब जाना । नृत्य करना अच्छा होगा, गाना अच्छा होगा और उसमें पूरी - —

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