Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 04
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 483
________________ ठीक ऐसा ही कुछ तुम्हारे साथ भी हुआ है : 'मैं स्वयं को खोया –खोया महसूस करता हूं-अपने पुराने जीवन में वापस लौटने का कोई मार्ग नहीं बचा है-सभी सेतु टूट चुके हैं। और मुझे आगे भी कोई मार्ग दिखायी नहीं पड़ रहा है।' इसे ही मैं ध्यान का प्रारंभ कहता हूं, अपने अंतर- अस्तित्व में प्रवेश करने की शुरुआत कहता हूं। भयभीत मत होना; अन्यथा तुम फिर से अपने ही स्वप्नों के शिकार हो जाओगे। बिना किसी डर के, निर्भीकता और साहस के साथ उसमें प्रवेश करो। अगर तुम्हें मेरी बात समझ में आती है, तो फिर इसमें कोई कठिनाई नहीं है। बस, थोड़ी सी समझ की आवश्यकता है। निस्संदेह, अभी तुम्हें यह पता न चलेगा कि तुम कहां हो। तुम यह तो जान सकोगे कि तुम कौन हो, लेकिन तुम यह न जान पाओगे कि तुम कहा हो। क्योंकि यह 'कहां ' शब्द हमेशा दूसरों से ही संबंधित होता है।'कौन ' तुम्हारा अपना स्वभाव होता है, 'कहां ' किसी दूसरे से संबंधित होता है, तुलनात्मक होता है। और अब अतीत से संबंधित किसी तरह के सेतु नहीं बचेंगे; और निस्संदेह अब भविष्य के लिए भी किसी तरह के सेतुओं की कोई संभावना नहीं रही। अतीत जा चुका है, भविष्य का अभी कुछ पता नहीं है। अतीत स्मृति के अतिरिक्त और कुछ नहीं है, और भविष्य आशा के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। अतीत जा चुका है, और भविष्य अभी केवल एक सपना है। दोनों का ही अस्तित्व नहीं है। हमें वर्तमान में ही जीना होता है... और वर्तमान का क्षण इतना विराट, इतना असीम है कि व्यक्ति उसमें ऐसे खो जाता है जैसे कि पानी की बूंद समुद्र में खो जाती है। खोने के लिए तैयार रहो। अस्तित्व के इस विराट सागर में विलीन होने को, अपना अस्तित्व मिटाने को तैयार रहो। मन तो अभी भी अतीत की, पुराने से तादात्म्य की, परिचित की, साफ-सुथरे की ही आकांक्षा करेगाकि तुम कहां हो, कि तुम कौन हो? लेकिन यह सभी खेल भाषा के ही खेल हैं। मैंने एक कथा सुनी है एक अंग्रेज जो अमरीका घूमने गया था, पश्चिमी अमरीका के एक व्यक्ति से उसने कहा, 'तुम्हारा देश तो अदभुत है। सुंदर -सुंदर स्त्रियां, बड़े -बड़े विराट नगर! लेकिन फिर भी तुम्हारे यहां कोई अभिजात वर्ग नहीं है।' अमरीकी ने पूछा, 'क्या नहीं है?' 'अभिजात वर्ग नहीं है।' अमरीकी व्यक्ति ने पूछा, 'यह क्या होता है?'

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