Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 04
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 471
________________ ठूस कर खाते चले जाते हैं। अगर व्यक्ति समान का उपयोग करना जानता हो, तो भोजन की थोड़ी सी मात्रा भी भोजन मई अधिक मात्रा की अपेक्षा अधिक ऊर्जा देगी। इसीलिए योगी बिना अपने शरीर को कोई क्षति पहुंचाए कई -कई दिन तक उपवास कर पाते हैं। कभी-कभी वे थोड़ा सा भोजन ले लेते हैं, और उस भोजन को पूरी तरह से पचा लेते हैं, उसे मात्मसात कर लेते हैं। तुम्हारा भोजन तो पूरी तरह पच भी नहीं पाता है। इसीलिए आदमी का मल दूसरे जानवरों के लिए भोजन बन जाता है और वे उसे पचा सकते हैं। उस मल में बहुत सा भोज्य -पदार्थ अभी भी शेष बच रहता है। और तीसरे, समान के दवारा ही शरीर को ऊष्मा भी मिलती है। तिब्बत में समान के आधार पर ही एक पूरी पद्धति ही शरीर ऊष्मा निर्माण की विकसित कर ली है। वे एक सुनिश्चित ढंग से, एक सुनिश्चित लयबद्धता में श्वास लेते हैं, जिससे समान की ऊष्मा किरणें शरीर के भीतर एक विशेष ढंग से कार्य कर सकें। और उससे वे काफी ऊष्मा निर्मित कर लेते हैं। वे अपने भीतर इतनी ऊष्मा निर्मित कर लेते हैं कि चारों ओर बर्फ गिर रही हो और तिब्बती लामा पसीने से भीगा खुले आकाश के नीचे नंगा खड़ा रह सकता है। अगर चारों ओर बर्फ ही बर्फ हो, तो साधारण आदमी तो ठंड के मारे जमने ही लगेगा। इतनी बर्फ में घर से बाहर भी निकलना संभव नहीं है। और तिब्बती लामा है कि पसीने से तर-बतर गिरती हुई बर्फ के नीचे खड़ा रहेगा। तिब्बत में चिकित्सक की जो परीक्षा ली जाती है, उनमें से यह भी एक परीक्षा है। जब तिब्बत में कोई चिकित्सक बनता है तो पहले उसे एक परीक्षा देनी होती है, जिसमें उसे अपनी शरीर- अग्नि को निर्मित करना पड़ता है। अगर वह उसे निर्मित नहीं कर सकता, तो उसे डाक्टर होने का सर्टिफिकेट नहीं दिया जाता है। यह बहुत कठिन कार्य है। संसार में कोई भी दूसरी चिकित्सा-प्रणाली चिकित्सक से इतनी बड़ी अपेक्षा नहीं रखती है। यह कोई मौखिक परीक्षा ही नहीं है, यह कछ ऐसा नहीं है कि जिसे किसी तरह से रट लिया और परीक्षा में जाकर लिख दिया। व्यक्ति को सिदध करना होता है कि सच में उसने अपनी शरीर-ऊष्मा पर काबू पा लिया है, क्योंकि फिर जीवन भर उसे अपने मरीजों की ऊष्मा-ऊर्जा पर कार्य करना होता है। अगर उस ऊष्मा पर तुम्हारा ही पूरा अधिकार नहीं है, तो कैसे तुम दूसरों पर काम कर सकते हो? इसलिए पूरी रात गिरती हुई बर्फ में परीक्षार्थी को बाहर खड़े रहना पड़ता है। पूरी रात में नौ बार आता है और हर बार शरीर को छकर देखता है कि उसे पसीना आ रहा है या नहीं। अगर वह उतनी शरीर -ऊष्मा निर्मित कर सकता है, तो समान का मालिक होता है। अब वह चिकित्सक बन सकता है, अब वह चिकित्सक बनने के योग्य हो गया। अब उसका स्पर्श ही रोगी को चमत्कारिक ढंग से ठीक कर देगा।

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