Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 04
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 435
________________ और हो सकता है वह दूसरा आदमी अपनी पत्नी से तंग आ चुका हो, शायद वह अपने जीवन में रस भरने का, फिर से अपने जीवन में प्राण फूंकने का कोई उपाय ही सोच रहा हो -हो सकता है वह तुम्हारी ही पत्नी के प्रति आकर्षित हो जाए। सवाल किसी विशेष स्त्री या पुरुष का नहीं है। सवाल निषेध का है, जो स्वीकृत नहीं है, जो अनैतिक है, जो दमित है -जो तुम्हारे स्वीकृत मन का हिस्सा नहीं है। जो समाज, घर –परिवार के द्वारा तुम्हारे मन में भर दिया गया है। जब तक मनुष्य पूरी तरह से अ -मन की अवस्था को उपलब्ध नहीं हो जाता, ये आकर्षण बने ही रहते हैं। और मजेदार बात यह है कि यह 'आकर्षण उन्हीं लोगों के द्वारा बनाए जाते हैं जो स्वयं को नैतिक, विशुदध और धार्मिक समझते हैं। और वे जितना अधिक किसी बात को अस्वीकार करते हैं, उतनी ही अधिक वह निषेध आकर्षण का कारण बन जाता है, उतना ही अधिक वह निमंत्रण देता है क्योंकि वह निषेध समाज की बनी -बनाई लकीर से बाहर आने का अवसर देता है वह सामाजिक सीमाओं से बचकर भाग निकलने का अवसर देता है। अन्यथा हर जगह समाज ही समाज है, हर कहीं तुम भीड़ से घिरे हा हो। यहां तक कि जब तुम अपनी पत्नी से प्रेम कर रहे होते हो, समाज तब भी कहीं बीच में खड़ा रहता है। तुम पर किसी न किसी रूप में नजर लगाए होता है। यहां तक कि तुम्हारे स्वात में भी समाज मौजूद रहता हैं, उतना ही जितना कि कहीं और मौजूद होता है। क्योंकि समाज है तुम्हारे मन में, और वह तुम्हारे मन के उस प्रोग्राम में निहित है जो समाज और परिवार ने तुमको दिए हैं। तो मन के माध्यम से वह कार्य करता रहता है। वह एक बड़ा चालबाज रचना तंत्र है। कभी न कभी, किसी समय हर एक व्यक्ति को ऐसा लगता है कि बस वही किया जाए जो समाज में, परिवार में स्वीकृत नहीं है। उस बात को ही किया जाए उसी के लिए ही कह दी जाए, जिसके लिए हमेशा नहीं कहने को बाध्य किया जाता है -स्वयं के ही विरुदध कोई कार्य किया जाए। क्योंकि यह स्वयं और कुछ नहीं है, सिवाय उस आयोजन के जिसे समाज ने तुम्हें पकड़ा दिया है। जो समाज जितना अधिक कठोर होता है, वहां उतनी ही अधिक विद्रोह की संभावना होती है। जो समाज जितना स्वतंत्र होता है, वहां उतनी ही कम विद्रोह की संभावना होती है। मैं उस समाज को क्रांतिकारी समाज कहंगा, जहां विद्रोही खो जाते हैं, क्योंकि फिर उनकी कोई आवश्यकता नहीं रहती। मैं उस समाज को स्वतंत्र समाज कहूंगा, जहां कोई भी बात अस्वीकृत न हो; जिससे किसी के भी मन में कोई विकृत, रूग्ण आकर्षण पैदा न हो। अगर समाज नशीले पदार्थों का विरोध करता है, तो नशीले पदार्थ व्यक्ति को आकर्षित करेंगे, क्योंकि नशीले पदार्थ मन को एक ओर हटा देने का अवसर देते हैं।

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