________________
जान पाएगा। अगर कोई किसी की हत्या कर दे तो उसका नाम प्रसिद्ध हो जाएगा, वह फेमस हो जाएगा। लेकिन अगर कोई व्यक्ति किसी में जीवन का संचार कर दे, तो कोई उसके ऊपर भरोसा न करेगा। लोग कहेंगे, तुम चालाक हो, धूर्त हो, धोखेबाज हो।
ऐसा हमेशा से होता आया है। किसी ने जीसस पर भरोसा नहीं किया, लोगों ने उन्हें मार ही डाला। किसी को सुकरात पर भरोसा नहीं आया, लोगों ने उसकी हत्या कर दी। लोगों ने तो ईसप जैसे निर्दोष
और बाल सुलभ आदमी की-जो कि एक प्रसिद्ध कहानी वाचक था उस तक की हत्या कर दी। उसने कुछ नहीं किया था, उसने कभी कोई धर्म या दर्शन-शास्त्र खड़े नहीं किए थे, और वह किसी के विरुद्ध कुछ भी नहीं कह रहा था-वह तो बस थोड़ी सी सुंदर नीति-कथाओं की रचना कर रहा था। लेकिन उन कथाओं ने ही लोगों को नाराज और रुष्ट कर दिया, क्योंकि उन कथाओं के माध्यम से वह इतने सीधे -सरल ढंग से सच्चाइयों की अभिव्यक्ति कर रहा था कि उसका कत्ल कर दिया गया।
हम उन लोगों की किसी न किसी तरह से हत्या कर देते हैं, जो जीवन के प्रति विधायक हैं, जिनका जीवन के प्रति स्वीकार भाव है, जो जीवन को आगे बढ़ाते हैं, जीवन में वृद्धि करते हैं, जीवन में कुछ नया जोड़ते हैं। हम उनसे प्रमाण-पत्रों की मांग करते हैं, उनसे प्रफ मांगते हैं।
अगर कोई मेरे पास आकर मुझसे पूछे कि मैं यहां क्या कर रहा हूं, तो यह बताना बहुत कठिन होगा। अगर मैं उन्हें अपना प्रमाण दू तो वे कहेंगे कि तुम पागल हो गए हो। अब यह बात जरा सोचने जैसी है। अगर कोई मेरे विरोध में है, तो लोग उसका भरोसा कर लेंगे; अगर कोई मेरे पक्ष में है, तो वे उसका भरोसा नहीं करेंगे। अगर कोई विरोध में है तो चाहे वह कितना ही मढ़ क्यों न हो-वे उसके साथ किसी विवाद में न पड़ेंगे। वे कहेंगे, ठीक ही कह रहा है। और अगर कोई मेरे साथ है और मेरे पक्ष में है -तो चाहे वह कितना ही बदधिमान क्यों न हो-वे उस पर हंसेंगे, उसका मजाक उडाके, और जान करके कहेंगे, मुझे पता है, तुम सम्मोहित हो गए हो।
जरा डा फडनीस से पूछो; लोग उनसे कहते हैं कि वे सम्मोहित हो गए हैं।
यही तर्क का दुष्चक्र है। अगर मैं तुम्हें आश्वस्त कर दूं, तो तुम सम्मोहित मालूम पड़ते हो; अगर मैं तुम्हें आश्वस्त न कर पाऊं, तो मुझे गलत समझा जाता है। तो हर ढंग से मैं गलत ही सिद्ध होता हूं। अगर कोई आश्वस्त है..
ऐसा हुआ था। स्वभाव यहां पर हैं। अभी कुछ साल पहले वे अपने दो भाइयों के साथ यहां आए थे, वे तीनों भाई मेरे साथ वाद-विवाद करने के लिए आए थे। और उन तीनों में स्वभाव सबसे अधिक विवादी थे; लेकिन फिर भी स्वभाव ईमानदार और सीधे -सरल आदमी हैं। धीरे - धीरे स्वभाव के संदेह दूर हो गए। वह दूसरे दो भाइयों के साथ अगुआ बन कर आए थे, फिर वे ही टिक गए। तो दूसरे दोनों भाई उनके विरोधी हो गए। अब वे कहते हैं कि स्वभाव सम्मोहित हो गए हैं। उन दोनों भाइयों ने आना बंद कर दिया, वे मेरी बात नहीं सुनेंगे। अब वे भयभीत हैं कि अगर स्वभाव