Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 04
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 447
________________ फिर एक आदमी मुल्ला के पास आकर बोला, 'तुम तो एकदम मूढ़ हो। इस तरह से तो तुम इस गधे को कभी न बेच पाओगे, यह कोई बेचने का तरीका है। अगर तुम मुझे थोड़ा कमीशन दो, तो मैं इसकी नीलामी करवा दूंगा। और तुम देखना यह सब मैं कैसे करता हूं।' मुल्ला बोला, 'ठीक है।' क्योंकि मुल्ला भी थक चुका था। वह आदमी एक कुर्सी पर जाकर खड़ा हो गया और जोर-जोर से चिल्लाने लगा, ' आज तक इ महान गधा कभी नहीं हुआ, जो सुंदर है, प्रेमपूर्ण है, आज्ञाकारी है यह एक धार्मिक गधा है। धीरे धीरे उसके आसपास भीड़ इकट्ठी हो गयी और लोग उस गधे की बोली लगाने लगे और उसकी बोली खूब ऊपर जाने लगी। गधे की इतनी कीमत लगते देखकर मुल्ला भी अपने को रोक न सका। मुल्ला बोला, 'ठहरो! मैं इतने सुंदर गधे को नहीं बेचना चाहता। मैं इसे नहीं बेच सकता। मुझे इसकी इन खूबियों का तो पता ही नहीं था। तुम अपना कमीशन वापस ले लो; मैं अपने गधे को नहीं बेचना चाहता।' - यही तो राजनीति है। तुम्हें अपना मूल्य नहीं पता है, तुम बाजार में पहुंचकर अपना प्रचार करो, और अपनी बोली लगने दो, और जब लोग आकर तुम्हारी कीमत लगाने लगते हैं, तो तुम्हें अच्छा लगता है। तब तुम्हें लगता है कि तुम्हारा भी कुछ मूल्य है, वरना इतने सारे लोग क्यों तुम्हारे पीछे पागल होते? जो व्यक्ति स्वयं के प्रति बोध से भर जाता है, उसे किसी तरह के प्रोत्साहन की जरूरत नहीं रहती । स्वयं के प्रति जागरूक होने का प्रयास करो। सभी प्रोत्साहन, सभी तरह की प्रशंसाएं खतरनाक होती हैं, क्योंकि वे तुम्हें और तुम्हारे अहंकार को गुब्बारे की तरह फुला देती हैं। अहंकार को इसमें बड़ा रस आता है, लेकिन अहंकार ही तुम्हारा रोग है । तुम्हें किसी तरह के प्रोत्साहन, सहारे या बढ़ावे की जरूरत नहीं है; तुम्हें समझ की जरूरत है। यह सब देखने के लिए तुम्हें प्रज्ञा की आख की आवश्यकता है। और मैं यहां कोई फौज तैयार नहीं कर रहा हूं कि मैं तुम्हें प्रोत्साहित करूं और तुम्हें प्रेरणा दूं और तुमसे कहूं कि देश के लिए, धर्म के लिए जाकर लड़ो – मरो, अपना बलिदान कर दो। मैं यहां कोई फौज तैयार नहीं कर रहा हूं, मैं यहां कोई सेना तैयार नहीं कर रहा हूं। मैं व्यक्ति के, इंडिविजुअल के निर्माण के लिए प्रयास कर रहा हूं। मैं तुम्हारे साथ इस बात का सहयोग देने का प्रयास कर रहा हूं जिससे तुम स्वयं के साथ एक अनूठी समस्वरता को पा लो कि तुम जान लो कि तुम कहां पर खड़े हो, कि तुम कौन हो, कि तुम क्या कर रहे हो और इसमें तुम्हें आनंद मिलता है; क्योंकि केवल उसी से जीवन में अर्थवत्ता आती है, तुम्हारे जीवन में फूल खिलते हैं। और जब व्यक्ति अपनी नियति को उपलब्ध हो जाता है, तभी वह आनंदित अनुभव करता है। मैं यहां तुम्हें कोई हिंदू ईसाई या मुसलमान बनाने के लिए नहीं हूं। हिंदू मुसलमान, ईसाई बनाने के लिए प्रोत्साहन की जरूरत होती है, उन्हें राजनीति की आवश्यकता होती है। उन्हें धर्म के नाम पर एक

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