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एक वह व्यक्ति जो बाह्य संसार की यात्रा पर जा रहा होता है उनके लक्ष्य और उद्देश्य एकदम अलग -अलग होते हैं, एकदम विपरीत होते हैं।
और ऐसा उस समय होता है जब व्यक्ति को कई बार प्रतिभा की, एकदम पार की पहली -पहली झलकियां आने लगती हैं। और वह इतना शक्ति -संपन्न हो जाता है, इतना शक्ति से भर जाता है, इतना शक्तिशाली हो जाता है -वह घड़ी एक ऐसी घड़ी होती है, जब व्यक्ति फिर से नीचे गिर सकता है। शक्ति उसे विकृत कर सकती है, और इस कारण गिरना हो सकता है। तब व्यक्ति अपने को इतना अधिक बुद्धिमान समझने लगता है कि वह अहंकारी हो जाता है -तव वह उस शक्ति पर सवार होने का मजा लेना चाहेगा। फिर वह चमत्कार या इसी प्रकार की कुछ मूढ़ताएं करने लगेगा।
सभी तरह के चमत्कार दिखाने वाले लोग एक तरह से मूढ़ और मूर्ख ही होते हैं –चाहे वे कहें कुछ भी। वे कह सकते हैं कि वे यह चमत्कार लोगों की मदद करने के लिए कर रहे हैं। वे किसी की भी मदद नहीं करते हैं स्वयं को ही नुकसान और क्षति पहुंचाते हैं - और अपने साथ दूसरों को भी क्षति पहुंचाते हैं। क्योंकि इन चमत्कारों को दिखाने के चक्कर में वे पार जाने की जगह और नीचे गिर जाते हैं। और तब पूरी बात ही चालाकी और धूर्तता की बनकर रह जाती है।
परा -मनोविज्ञान में इस तरह की चालाकियां की जा सकती हैं, अंतर्बोध के, चंद्र के जगत में कुछ ऐसे दाव -पेंच होते हैं जिन्हें एक बार जान लेने के बाद उनके साथ खिलवाड़ किया जा सकता है। फिर भी वे हैं कलाबाजियां ही, और फिर अहंकार उन कलाबाजियों का उपयोग कर सकता है। मैंने एक बहुत ही सुंदर कथा सुनी है :
एक कैथोलिक पादरी, एक ऐंग्लिकन पादरी और एक रब्बी एक शांत झील के बीच खड़ी छोटी सी नाव में बैठे मछलियां पकड़ रहे थे। सुबह से लेकर दोपहर तक वे बिना हिले -डुले, बिना कुछ बोले वहां बैठे रहे। तब कैथोलिक पादरी बोला,' अच्छा, दोपहर के भोजन का समय हो गया है। मैं तुम दोनों से रेस्तरा में मिलूंगा।'
इतना कहकर वह उठ कर खड़ा हो गया, और पानी पर चलते हुए झील के किनारे के रेस्तरा की ओर
चला गया।
तब ऐंग्लिकन पादरी ने कहा,'मुझे लगता है कि मैं भी दोपहर का भोजन कर ही लूं।'
इतना कहते हुए पानी पर चलते हुए वह भी उसी दिशा की ओर बढ़ गया जिधर कैथोलिक पादरी गया
था।
रब्बी तो ईसाई एकात्मकता के इस चमत्कार प्रदर्शन पर अवाक रह गया। फिर भी यह सोचकर कि उसका विश्वास और परंपराएं दाव पर लगी हुई हैं, उसने जल्दी से अपने ईश्वर जहोवा के लिए प्रार्थना की और नाव के किनारे को लांघ गया। छपाक की आवाज के साथ वह पानी में एकदम नीचे जाकर