Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 04
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 425
________________ गिरा। वह जैसे -तैसे तैर कर ऊपर आया और किनारे पर आकर अब और भी जोश से धार्मिक प्रार्थना की। फिर से छपाक की आवाज आई! वह फिर पत्थर की तरह सीधा पानी में नीचे जाकर गिरा। कैथोलिक पादरी झील के किनारे खड़ा -खड़ा यह सब देख रहा था और तभी ऐंग्लिकन पादरी भी किनारे पर पहुंच गया, वह बोला,'हमें इस बेचारे को बता देना चाहिए था कि पैर रखने के लिए पत्थर कहा -कहां पर हैं।' हर जगह पैर रखने के लिए पत्थर मौजूद हैं। तुम्हारे सारे सत्य साईं बाबा-जों वे कर रहे हैं, उससे बहत अधिक चकित मत हो जाना। पाव रखने के पत्थरों को भी देख लेना-वे मौजूद हैं। और ये लोग कोई भी आध्यात्मिक लोग नहीं हैं। पतंजलि कहते हैं, यह वे शक्तियां हैं जब मन बाहर की ओर मुड़ रहा होता है, लेकिन यही समाधि के मार्ग में बाधाएं हैं। अगर परम को उपलब्ध होना है, तो इन सब मूढ़ताओं को छोड़ना होगा। इन सभी को छोड़ना होगा। और यही एक सच्चे खोजी का ढंग है मार्ग में उसे जो कुछ भी मिलता है, वह उसे परमात्मा के चरणों में चढ़ा देता है। वह कहता 'तुमने मुझे दिया, लेकिन मैं इसका करूंगा क्या? मैं तो फिर से तुम्हारे चरणों में ही चढ़ा दे कुछ भी उसे प्राप्त होता है, वह उसे परमात्मा के चरणों में चढ़ा देता है, और स्वयं हमेशा रिक्त और खाली का खाली ही रहता है। यही है सच्ची आध्यात्मिकता हमेशा उपलब्धि से, या जो भी अस्तितव से मिला है उससे रिक्त और खाली रहना, और जो कुछ भी मार्ग में मिल जाए उसे परमात्मा के चरणों में चढ़ाते चले जाना। मैं तुम से एक और कथा कहना चाहूंगा पुरोहित-पादरियों की एक मंडली इस बात पर चर्चा कर रही थी कि वे अपने धर्म -संचयन में आए दान का उपयोग किस तरह से करें। एक डिसेंटर पादरी ने उदघोषणा की,'मेरे लोग जो कुछ भी दान -पेटी में डालते हैं, वह सब का सब परमात्मा के कार्य में चला जाता है - अपने लिए तो मैं एक पैसा तक नहीं रखता!' ऐंग्लिकन ने उसके उत्साह की प्रशंसा करते हुए स्वीकार किया,'मैं तांबे को दान-पेटी में डालता हूं, और चांदी की चीजें परमात्मा के पास पहुंचती हैं।' वहां मौजूद कैथोलिक पादरी ने स्वीकार किया,'मैं चांदी की चीजें रख लेता हं, और तांबे का सब सामान परमात्मा के लिए जाता है -मैं तुम्हें यह बता दूं कि गरीबों के चर्च में बहुत तांबा है।'

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