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अस्तित्व और जीवन के नियमों को पढ़ते-सीखते उनका एक वर्ष बीत गया। अंततः राजा अपने नगर लौट आया और उसने जरथुस्त्र से निवेदन किया कि वह अपनी महान शिक्षा के सार तत्व को व्यवस्थित रूप से संगृहीत कर दे। जरथुस्त्र ने वैसा ही किया, और उसी के परिणामस्वरूप पारसियों की महान पुस्तक 'जैदावेस्ता का आविर्भाव हुआ ।
यह पूरी कहानी बस यही बताती है कि मनुष्य परमात्मा कैसे हो सकता है।
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जो कुछ मनुष्य में बीज रूप छिपा हुआ है, वह अगर उदघाटित हो जाए, प्रकट हो जाए, तो मनुष्य परमात्मा हो सकता है।
बीज हो जाओ। तुम हो भी, लेकिन अभी भी सोने के डिब्बे में ही कैद पड़े हुए हो। पृथ्वी से - जिससे कि तुम जुड़े ही हु हो – उसमें गिर जाओ, और उसमें विलीन होने को, मिटने को तैयार हो जाओ। मृत्यु से भयभीत न होओ, क्योंकि जो व्यक्ति मृत्यु से भयभीत हैं, वे स्वयं को जीवन से, एक महान जीवन से वंचित कर रहे हैं मृत्यु जीवन का द्वार है जीवन की प्रथम पहचान मृत्यु है इसलिए जो लोग मृत्यु से भयभीत हैं, वे जीवन के द्वार बंद कर रहे हैं फिर वे सोने के डिब्बे में सुरक्षित पड़े रहेंगे, लेकिन तब उनका विकास न हो सकेगा। मृत्यु से भयभीत होकर कोई भी स्वयं को पुनर्जीवित नहीं कर सकता। वस्तुतः तो जो लोग सोने के डिब्बे में बंद पड़े रहते हैं, उनका जीवन मृत्यु के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है।
पृथ्वी में, मिट्टी में गिरकर मरना जीवन का अंत नहीं प्रारंभ है। लेकिन सोने के डिब्बे में ही बंद पडे रहना जीवन का वास्तविक अंत है उसमें कहीं भी जीवन की आशा नहीं है।
तुम बीज हो। तुम्हें कहीं जाने की कोई जरूरत नहीं है। जो भी तुम्हारी जरूरत है, वह तुम्हारे पास आने को तैयार है, लेकिन बीज के खोल को तो टूटना ही होगा। बीज को टूटकर अपने अहंकार को पृथ्वी में विलीन करना पड़ता है, अहंकार को मिटाना पड़ता है। इधर अहंकार मिटा नहीं कि उधर संपूर्ण अस्तित्व तुम्हारी तरफ उमड़ पड़ता है। तुम वह होने लगते हो, जैसा होने की नियति तुम्हारी सदा से रही है। तुम अपनी वास्तविक नियति को उपलब्ध हो जाते हो।
सच तो यह है यही किनारा दूसरा किनारा भी है। कहीं और जाने की जरूरत नहीं है। एकमात्र जरूरत है तो केवल भीतर जाने की। कुछ और नहीं करना है, बस स्वयं के भीतर छलांग लगानी है स्वयं के अंतर स्वर के साथ संगति बिठा लेनी है लाओत्सु, दूसरे किनारे तक्र कैसे पहुंचा जाए इसका मार्ग नहीं बताएंगे।
हम इसी कथा को दूसरे ढंग से भी देख सकते हैं। यहां पर तीन लोग हैं पतंजलि, बुद्ध और लाओत्सु । पतंजलि पानी पर चलने का प्रयास करेंगे, वे ऐसा कर सकते हैं। वे चेतना के अंतर्जगत के बड़े वैज्ञानिक हैं। वे जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण के पार कैसे जाना ।