________________
गंभीरता तो एक प्रकार का रोग है, सर्वाधिक घातक रोगों में से एक रोग है -और धर्म के क्षेत्र में यह रोग प्राचीनतम रोगों में से एक है।
थोड़ा इस बात को समझने की कोशिश करना।
तुम अधिक होशियार, चतुर, चालाक बनने की कोशिश मत करना, क्योंकि वह तो केवल तुम्हारी मूढ़ता को ही दर्शाती है, और किसी बात को नहीं। स्वयं को थोड़ा मूढ़ भी रहने देना, तभी तुम बुद्धिमान होओगे। एक मूढ़ आदमी बुद्धिमत्ता का विरोधी होता है, लेकिन जो व्यक्ति बुद्धिमान होता है वह मढ़ता को भी स्वयं में समाहित कर लेता है। वह मूढ़ता का विरोधी नहीं होता है, वह उसका भी उपयोग कर लेता है।
इस पृथ्वी पर जो सर्वाधिक असंगत व्यक्ति हुए हैं उनमें से एक च्चांगत्सु एक था। इसीलिए मैंने इस सभागृह को 'च्चांगत्सु आडीटोरियम' नाम दिया है। मुझे उस आदमी से प्रेम है, वह इतना असंगत है। इस आदमी को प्रेम करने से कोई कैसे बच सकता है।
बुद्ध नहीं कहेंगे कि मैंने सपना देखा। वे थोड़े गंभीर हैं। पतंजलि ऐसा नहीं कहेंगे, क्योंकि वे चिन्मय से घबड़ाके। क्योंकि फिर कोई स्वामी ऐसा प्रश्न उठाएगा ही कि तुमने और सपना देखा? संबुद्ध व्यक्ति तो कभी सपना देखते ही नहीं। क्या कह रहे हो?
च्चांगत्स् को किसी से कोई भय नहीं है। वह कहता है, 'मैंने सपना देखा।' वह बहुत प्यारा आदमी है। वह सच में धार्मिक आदमी है। वह स्वयं हंस सकता है और दूसरों को भी हंसने में मदद कर सकता है; उसकी धार्मिकता हंसी से परिपूर्ण है।
चौथा प्रश्न:
स्व-निर्भर होने के लिए पतंजलि की विधि या आपकी विधि क्या है? इस संबंध में कृपया यह भी समझाएं कि आध्यात्मिक व्यक्ति ठीक-ठीक वर्तमान के क्षणों में कैसे जी सकता है?
रोज के व्यावहारिक जीवन में क्षण-क्षण वर्तमान में जीने की आदत कैसे बनायी जाए?