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की भांति उपयोग किए जाने के लिए तुम यहां पर नहीं आए हो। तुम इस संसार में अपने अस्तित्व की खिलावट के लिए आए हो, और वही तुम्हारी सच्ची नियति भी है।
बुद्धि से ऊपर अंतर्बोध है। अंतर्बोध जीवन को थोड़ा प्रेममय, और थोड़ा काव्यात्मक बना देता है। उससे कुछ अपने अनुपयोगी होने की झलकियां मिल जाती हैं, कि तुम्हारा होना एक व्यक्ति की तरह है, वस्तु की तरह नहीं जब कोई व्यक्ति तुमसे प्रेम करता है, तो वह प्रेम तुम्हारे अंतबोध से तुम्हारे चंद्र - केंद्र से करता है जब कोई तुम्हारी तरफ मुग्ध होकर प्रेम से भरकर देखता है, या तुम्हारे प्रति आकर्षित होता है, तो वह देखना भीतर की चंद्र ऊर्जा को जीवंत कर देता है। अगर कोई तुम से कह दे कि तुम सुंदर हो तो तुम अपने में कुछ फैलाव, कुछ वृद्धि अनुभव करते हो। लेकिन अगर कोई तुमसे कह दे कि तुम बहुत उपयोगी हो, तुम्हारा बहुत उपयोग है, तो तुम्हें बहुत चोट लगती है, तुम्हें बहुत पीड़ा पहुंचती है कि उपयोगी ? इसमें कुछ प्रशंसा जैसा नहीं लगता। क्योंकि अगर तुम किसी स्थान के लिए उपयोगी हो तो तुम्हारा विकल्प खोजकर उस स्थान को भरा भी जा सकता है। तब तुम्हें हटाया भी जा सकता है और तब दूसरा व्यक्ति तुम्हारा स्थान ले सकता है। लेकिन अगर तुम सुंदर हो, तो तुम कुछ अद्वितीय और अनूठे हो जाते हो, तब तुम्हारी जगह किसी और को नहीं रखा जा सकता है। फिर तो जब तुम इस संसार से बिदा लोगे, तो तुम्हारे जाने से एक रिक्तता, एक खालीपन आ जाएगा, तुम्हारी कमी हमेशा बनी रहेगी ।
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इसीलिए हम प्रेम के लिए इतने लालायित रहते हैं। प्रेम अंतर्बोध के लिए आहार है। अगर व्यक्ति को प्रेम नहीं मिले तो उसका अंतर्बोध विकसित नहीं हो पाता है। अंतर्बोध के विकास के लिए जरूरी है कि व्यक्ति पर प्रेम की वर्षा हो जाए। इसीलिए अगर मां बच्चे से प्रेम करती है, तो बच्चा सहज और अपने अंतबध से जीता है। अगर मां बच्चे से प्रेम नहीं करती है, तो बच्चा बौदधिक हो जाता है, दिमाग से जीता है। अगर बच्चे की परवरिश आनंद से प्रेमपूर्ण और करुणा से भरे माहौल में होती है - और अगर बच्चे को उसके होने के कारण स्वीकार किया जाता है, न कि इसलिए कि वह किसी उपयोगिता की पूर्ति कर सकता है तो बच्चे का अंतर विकास बहुत ही अदभुत रूप से होता है और उसकी ऊर्जा चंद्र – केंद्र से संचालित होने लगती है। नहीं तो चंद्र - केंद्र निष्क्रिय ही रहता है, क्योंकि व्यक्ति को प्रेम मिला ही नहीं होता है।
कभी थोड़ा इस बात पर ध्यान देना। अगर तुम किसी स्त्री से कहते हो कि 'मैं तुमसे प्रेम करता क्योंकि तुम्हारी आंखें सुंदर हैं, तो वह आनंदित न होगी। क्योंकि कौन जाने कल वह अपनी आंखें खो बैठे। और उसे कोई रोग भी हो सकता है जिसके कारण वह अंधी भी हो सकती है, या ऐसा भी हो सकता है कि कल को आंखें सुंदर ही न रह जाएं आंखें तो मात्र सांयोगिक घटना हैं। जब तुम कहते हो, 'मुझे तुमसे प्रेम है, क्योंकि तुम्हारा चेहरा सुंदर है, तो स्त्री आनंदित नहीं होती। क्योंकि चेहरा तो हमेशा सुंदर नहीं रहेगा बुढ़ापा तो रोज रोज करीब आ रहा है लेकिन अगर तुम कहो कि मैं तुमसे प्रेम करता हूं, तब वह आनंद से भर जाती है। क्योंकि इसमें कुछ स्थायी है, यह बात सांयोगिक