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असाधारण बात है, क्योंकि कोई भी साधारण होना नहीं चाहता है। मैं तुम्हें साधारण होने को कहता हूं, इतना साधारण कि कोई भी तुम्हें किसी विशिष्ट व्यक्ति के रूप में न पहचाने, इतना साधारण कि तुम भीड़ में खो जाओ। तुम अपने से पूरी तरह स्वतंत्र हो जाउगे, अन्यथा तुम हमेशा स्वयं को कुछ न कुछ सिद्ध करने की कोशिश करते रहोगे। तब तुम हमेशा अपने आपको किसी न किसी रूप में दिखाते रहोगे -और तब यही बात एक तनाव बन जाती है, गंभीरता के रूप में खड़ी हो जाती है, और जीवन में एक बड़ा बोझ बन जाती है।
हमेशा अपने प्रदर्शन की कोई जरूरत नहीं है। तुम थोड़े शिथिल हो जाओ, और थोड़ा हंसो। जो कुछ भी मानवीय है उसके लिए मैं तुम्हें स्वीकृति देता हूं। जो भी मानवीय है वह सब तुम्हारा है। एक मनुष्य होने के नाते थोड़ा हंसो भी, रोओ भी, चिल्लाओ भी। एकदम साधारण हो जाओ। अगर तुम सहज और साधारण रहोगे तो अहंकार कभी अपना सिर न उठा सकेगा।
विशिष्ट होने का विचार ही अहंकार को जन्म देता है -इसलिए जो दूसरे लोग कर रहे हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि तुम्हें भी वही करना है। अगर वे अपने पांवों से चल रहे हैं, तो इसका मतलब है कि तुम्हें अपने सिर के बल खड़े हो जाना है। तब तो लोग आएंगे और तुम्हारी पूजा करने लगेंगे। वे कहेंगे, तुम कितने विशिष्ट हो, तुम कितने महान हो। लेकिन तुम मूढ़ के मूढ़ ही बने रहोगे। उनकी प्रशंसा की फिक्र मत करना, क्योंकि अगर एक बार भी तुम लोगों की प्रशंसा के आदी हो गए, तो तुम उनकी गिरफ्त में आ जाओगे -तब तुम्हें जीवनभर अपने सिर के बल ही खड़े रहना पड़ेगा। तब तुम चलने -फिरने का पूरे का पूरा सौंदर्य ही गंवा बैठोगे। और निस्संदेह, तुम सिर के बल नृत्य तो नहीं कर सकते हो। क्या तुमने कभी किसी योगी को नृत्य करते देखा है? तब तो तुम ज्यादा से ज्यादा मुर्दे की भांति शीर्षासन करते हुए, सिर के बल खड़े रह सकते हो।
जब मैं कहता हूं, 'बुरी संगत,' तो मेरा मतलब है कि तुमने अहंकार की कुछ चालाकियां उन लोगों से सीख ली हैं जो अपने अहंकार में डूबे हुए हैं। जब कोई आदमी अपने किसी अहंकार की पूर्ति में लगा हो तो ऐसे आदमी से बचना और उसके पास से भाग निकलना, क्योंकि तब इसी बात की संभावना अधिक है कि वह अपना कुछ न कुछ रोग तुम्हें भी दे जाएगा।
और अधिकांश लोग नकल के द्वारा, अनुकरण के द्वारा ही जीते हैं।
मैंने सुना है एक अधिकारी जो अक्सर यात्रा पर रहता था, अपनी इटली यात्रा से लौटा तो न्यूयार्क में एक मित्र को उसने दोपहर के भोजन के लिए आमंत्रित किया।
उसके मित्र ने पूछा, 'जब तुम इटली में थे तो वहां तुमने कोई उत्तेजनापूर्ण कार्य किया या नहीं? अमरीकी अधिकारी ने लापरवाही से कहा, 'ओह, तुम ने एक पुरानी कहावत के बारे में सुना है। जब रोम में रहना हो तो रोम के लोगों की तरह व्यवहार करो।'