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लेकिन हमको दूसरे की इतनी अधिक आकांक्षा क्यों होती है? ऐसी आकांक्षा ही क्यों होती है -दूसरे व्यक्ति का इतना सतत पागलपन क्यों होता है? गलत कदम कहां उठ गया है? हम स्वयं के साथ संतुष्ट क्यों नहीं होते? हम क्यों सोचते हैं कि किसी भांति हम में कुछ न कुछ अभाव है? यह गलत धारणा हमारे अंदर. कैसे घर कर गयी है कि हम अधुरे हैं? हमारा शरीर से अत्यधिक तादात्म्य होने के कारण ही ऐसा है। हम शरीर नहीं हैं। अगर एक बार पहला कदम गलत उठ जाए, तो फिर दूसरा कदम भी गलत उठेगा, और फिर इसी तरह आगे भी गलत कदम उठते चले जाते हैं, फिर इसका कहीं कोई अंत नहीं है।
विवेक से पतंजलि का अर्थ है स्वयं को शरीर से पृथक जानना, अलग जानना। इस बात का बोध कि मैं शरीर में हूं, लेकिन मैं शरीर नहीं हूं। इस बात का बोध कि मन मेरे में है, लेकिन मैं मन नहीं हूं। इस बात का बोध कि मैं तो हमेशा शुद्ध साक्षी हूं, द्रष्टा हूं? देखने वाला हूं। मैं दृश्य नहीं हूं, मैं कोई विषय -वस्तु नहीं हूं। मैं शुद्ध आत्मा हूं।
सरिन किर्केगाद, जो पश्चिम के सर्वाधिक प्रभावशाली अस्तित्ववादी विचारकों में से एक है, ने कहा है'गॉड इज सब्जेक्टिविटी।'
उसका यह वक्तव्य पतंजलि के बहुत निकट है। जब वह कहता है, गॉड इज सब्जेक्टिविटी तो इसका क्या अर्थ है? जब सभी विषय अलग से जान लिए जाते हैं, तो वे विलीन होने लगते हैं। वे विषय हमारे सहयोग के कारण ही अस्तित्व रखते हैं। अगर हम सोचें कि हम शरीर हैं, तो शरीर का अस्तित्व बना रहता है। शरीर को बने रहने के लिए तुम्हारी मदद चाहिए, तुम्हारी ऊर्जा चाहिए। अगर तुम सोचो कि तुम मन हो, तो मन क्रियाशील हो उठता है। मन को क्रियाशील रहने के लिए हमारी मदद, हमारा सहयोग और हमारी ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
मनुष्य के भीतर का रचना -तंत्र ऐसा है, कि बस थोड़ा सा ध्यान भर देने से ही उसका स्वभाव जीवंत हो उठता है, क्रियाशील हो उठता है। हमारी उपस्थिति मात्र से ही, हमारे ध्यान देने मात्र से ही शरीर की इंद्रियां क्रियाशील हो जाती हैं।
योग में वे कहते हैं कि यह तो ऐसे ही है जैसे मालिक घर से बाहर चला गया हो, और फिर वापस घर लौट आया हो। और जब मालिक घर आकर देखे, तो घर के नौकर -चाकर बातचीत में लगे हुए हैं, और कोई सीढ़ियों पर बैठा धम्रपान कर रहा है, और मकान की किसी को चिंता ही नहीं। लेकिन जैसे ही मालिक का घर में प्रवेश होता है, तो उनकी बातचीत रुक जाती है, फिर वे सिगरेट इत्यादि नहीं पीते, अपनी सिगरेट छिपाकर वे फिर से अपने काम -काज में लग जाते हैं। और अब वे यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि वे अपने काम में बहुत व्यस्त हैं, ताकि मालिक यह न सोच सके कि अभी थोड़ी देर पहले वे बातचीत में लगे थे, सीढ़ियों पर बैठकर सिगरेट पी रहे थे, सुस्ता रहे थे, आराम कर रहे थे। बस, मालिक की उपस्थिति और सभी कुछ व्यवस्थित हो जाता है, या जैसे कि कोई