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हैं, और वे बौदधिक आंदोलन ही हैं। क्योंकि वहां पर स्त्रिया पुरुषों जैसी बनने की कोशिश कर रही हैं। अगर स्त्रियां पुरुषों की प्रतिक्रिया करती हैं, तो उस प्रतिक्रिया करने के कारण वे स्वयं पुरुषों जैसी बनती चली जाएगी। और यह एक खतरनाक बात है।
स्त्री को स्त्री ही रहना चाहिए, तभी केवल एक अलग ढंग के संसार की और अलग ढंग के समाज की -चंद्र-केंद्रित समाज की संभावना है। लेकिन अगर स्त्री स्वयं ही आक्रामक हो जाए, जैसे कि वह होती जा रही है, तब तो वह भी पुरुषों की तरह की मूढ़ताएं, हिंसा और उग्रता को ही सीख लेगी। हो सकता है स्त्रियां इसमें सफल भी हो जाएं, लेकिन फिर उस सफलता में सूर्य –ऊर्जा ही कार्य करेगी।
जब इस पृथ्वी पर संक्रमण का समय होता है, उस समय आदमी को बहुत-बहुत सजग रहना होता है। जब मनुष्य चेतना में संक्रमण का काल होता है उस समय आदमी को बहुत सचेत, सजग और जागरूक रहना होता है। एक छोटा सा भी गलत कदम-और सभी कुछ गलत हो सकता है। अब इस बात की संभावना बनी है कि चंद्र -ऊर्जा क्रियाशील होकर संसार पर शासन कर सकती है, लेकिन अगर स्त्री भी पुरुष की तरह कठोर और आक्रामक हो जाएगी तो वह पूरी बात को ही चूक जाएगी,
और इस तरह से पुरुष स्त्री के माध्यम से पुन: विजय हासिल कर लेगा और इस तरह से सूर्य - ऊर्जा ही सत्ता में बनी रहेगी। सूर्य –ऊर्जा ही शासन करती रहेगी।
तो हमें बुदधि से अंतर्बोध तक जाना है और फिर अंतर्बोध के भी पार जाना है। विकसित होने की सही दिशा यही है पुरुष से स्त्री तक, और अंत में स्त्री के भी पार जाना है।
एक प्रश्न और पूछा गया है कि जहां तक पुरुष का संबंध है यह बात समझ में आती है। स्त्रियों के संबंध में क्या? वे तो चंद्र -केंद्र में ही रहती हैं। उन्हें क्या करना चाहिए?
उन्हें सूर्य -केंद्र को आत्मसात करना होगा। जैसे कि पुरुष को चंद्र -केंद्र को समाहित करना है, स्त्री को सूर्य -केंद्र को समाहित करना है। अन्यथा स्त्री में किसी न किसी बात का अभाव रहेगा, वह पूर्णरूप से स्त्री न हो सकेगी। तो पुरुष को सूर्य -केंद्र से चंद्र-केंद्र तक बढ़ना है, बुद्धि से अंतर्बोध तक। स्त्री को बदधि से जीना भी सीखना है, जीवन को तर्क भी सीखना है। स्त्री प्रेम जानती है, पुरुष तर्क जानता है, पुरुष को प्रेम करना सीखना है, और स्त्री को तर्क सीखना है। तभी जीवन में संतुलन बन सकता है।
स्त्री को सूर्य -केंद्र को आत्मसात करना होगा- और वह बहत ही सरलता से, आसानी से उसे अपने में आत्मसात कर सकती है, क्योंकि उसका चंद्र-केंद्र क्रियाशील है। बस, चंद्र को थोड़ा सा सूर्य की ओर खुलना है। बस, थोड़ा सा मार्ग का भेद है पुरुष को अपनी सूर्य –ऊर्जा को चंद्र-ऊर्जा तक ले आना है; स्त्रियों को केवल इतना करना है कि उन्हें अपनी चंद्र-ऊर्जा को सूर्य –ऊर्जा की ओर खोल देना है, और इससे एक -दूसरे में ऊर्जा प्रवाहित होने लगेगी।