Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 04
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 380
________________ क्या हुआ। हालाकि उसने ऐसा कहा तो केवल पैसों के लिए है, लेकिन फिर भी किसी स्त्री ने मुझसे कहा तो कि वह मुझसे प्रेम करती है।' वानगाग में उस स्त्री से, उस वेश्या से पूछा कि 'तुम मुझसे प्रेम क्यों करती हो?' क्योंकि यह बात उसे हमेशा परेशान किए रहती थी। कोई भी उससे प्रेम नहीं करता था, उसे अपनी कुरूपता का पता था।'तुम मुझसे प्रेम क्यों करती हो?' उसके लिए यह स्वीकार कर पाना असंभव था कि कोई सिर्फ उसके लिए ही उसे प्रेम कर सकता है-'क्यों?' और वह वेश्या कुछ समझ नहीं पा रही थी कि वह क्या कहे। क्योंकि कहने को कुछ था नहीं, और जो कुछ भी वह कहेगी वह हंसी का पात्र ही लगेगा। वह कह भी नहीं सकती थी कि 'तुम्हारी आंखों के कारण प्रेम करती हूं ' वह यह भी नहीं कह सकती थी कि 'तुम्हारे चेहरे के कारण तुम्हें प्रेम करती हूं, ' वह यह भी नहीं कह सकती थी कि 'तुम्हारे शरीर के कारण तुम्हें प्रेम करती हूं –वह जो कुछ भी कहती गलत ही लगता। वह बोली, 'तुम्हारे कानों के कारण मैं तुम्हें प्रेम करती हूँ। तुम्हारे कान बहुत सुंदर हैं।' कान? क्या तुमने कभी ऐसा सुना है कि किसी ने कानों से प्यार किया हो? और वानगाग तो यह सुनकर ऐसा मंत्र मुग्ध हो गया कि घर जाकर उसने एक कान काटा, उसे कपड़े में लपेटा, वापस लौटा और वह कान स्त्री को भेंट कर दिया। वानगाग उस स्त्री से बोला, 'कभी किसी ने मुझ में कुछ भी पसंद नहीं किया। यह एक गरीब आदमी की भेंट है, लेकिन फिर भी तुम इसे स्वीकार कर लो।' वह स्त्री तो वानगाग की ऐसी भेंट को देखकर चकित रह गयी। उसे तो भरोसा ही नहीं आया कि यह किस तरह का पागल आदमी है? लेकिन वानगाग को बहुत ही अच्छा लग रहा था, वह बहुत खुश था। वह अपने एक पत्र में लिखता है, 'वह मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी थी। किसी ने तो मेरे में कुछ पसंद किया और मैं अपने अस्तित्व को बाट सका।' थोड़ा ध्यान देना, थोड़ा इस पर गौर करना। जब कभी कोई व्यक्ति तुमसे प्रेम करता है, बस प्रेम करता है, बेशर्त प्रेम करता है, तो वह कहता है, 'मुझे तुमसे प्रेम है क्योंकि तुम तुम हो, मुझे तुमसे प्रेम है क्योंकि तुम हो।' तब उस समय तुम्हारी ऊर्जाओं के बीच क्या होता है? उस समय सूर्य –ऊर्जा चंद्र-ऊर्जा की ओर सरक जाती है। अब सूर्य का उत्ताप उतना नहीं रहता है, चंद्र उसे. शीतल कर देता है। और तब उस चंद्र-ऊर्जा की शीतलता का भव्य सौंदर्य तुम्हारे संपूर्ण अस्तित्व पर बरस जाता है। अगर इस संसार में अधिकाधिक प्रेम हो, तो लोग अंतर्बोध से ज्यादा जीएंगे, बुदधि से कम, और तब वे अधिक सुंदर होंगे। तब आदमी वस्तु की तरह नहीं होगा, तब आदमी आदमी की तरह होगा। तब व्यक्ति उत्साह से, उमंग से, सघनता से जीवन को जीएगा। तब उसके जीवन में एक दीप्ति होगी, और तब जीवन आनंद, उल्लास, उत्सव से भर जाएगा। अंतर्बोध पूर्णतया भिन्न बात है। अतबोध बिना किसी प्रक्रिया के कार्य करता है -वह तो सीधे परिणाम पर छलांग लगा देता है। सच तो यह है, अंतर्बोध सत्य की ओर खुलने का दवार है-उसमें

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