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है। वे तो प्रकति की ओर से ही नीचे की ओर सरकने के लिए बंधे ही हए है, प्रकृति की तरफ से ही वे ऊपर की ओर यात्रा नहीं कर सकते हैं, उनके भीतर कोई सीढ़ी या सोपान नहीं है।
मनुष्य के भीतर जो सात केंद्र हैं, हम उन सात केंद्रों का यही अर्थ करते हैं विकस्स के सोपान। यह सात चक्र व्यक्ति के भीतर हैं। अगर व्यक्ति चाहे तो अपनी काम ऊर्जा को ऊपर की ओर गतिमान कर सकता है -अगर व्यक्ति चाहे तो। अगर ऐसा नहीं चाहे, तो वह काम ऊर्जा के साथ नीचे की ओर सरक सकता है।
तो जब मनुष्य मानव शरीर धारण कर लेता है, तो उसके विकास की प्रक्रिया अब उसके हाथ में है। अब तक प्रकृति की ओर से सहयोग मिलता रहा। प्रकृति हमें इस बिंदु तक ले आयी है, अब यहां से आगे का उत्तरदायित्व हमें स्वयं लेना होगा। और हमें उत्तरदायित्व लेना ही होगा। मनुष्य परिपक्व हो चुका है, मनुष्य अब ऐसी जगह पहुंच गया है कि अब प्रकृति और अधिक देखभाल नहीं कर सकती है। इसलिए अगर हम होश से, बोध से आगे नहीं बढ़ते हैं, अगर विकसित होने के लिए सचेत पूर्वक प्रयास नहीं करते हैं, अगर हम अपने उत्तरदायित्व को स्वीकार नहीं करते, तो हम जहां हैं, वहीं अटककर रह जाएंगे, तब मनुष्य से परमात्मा तक का कोई विकास संभव नहीं है।
बहुत से लोग हैं जिन्हें इस बात का बोध होता है कि वे जड़ हो गए हैं, कहीं अटक कर रह गए हैं। लेकिन उन्हें मालूम ही नहीं पड़ता है कि यह अटकाव कहां से आ रहा है। कितने लोग मेरे पास आते हैं और वे मुझ से कहते हैं कि उन्हें एक तरह की जड़ता का, अटकाव का अनुभव हो रहा है। उन्हें ऐसा कुछ महसूस भी होता है कि कुछ संभव है, लेकिन उन्हें यह समझ नहीं आता कि क्या हो रहा है। उन्हें लगता है कि मनुष्य जीवन पर ही नहीं रुक जाना है, आगे बढ़ना है, लेकिन उन्हें यह समझ नहीं आता है कि कैसे बढ़ना है, और किस ओर बढ़ना है। वे जानते हैं कि जिस जगह वे हैं, बहुत लंबे समय से वहीं पर अटके हए हैं और वे नए आयामों, नयी दिशाओं में बढ़ना भी चाहते हैं, लेकिन फिर भी वे अटककर ही रह जाते हैं, उन्हें कुछ समझ नहीं आता है।
मनुष्य के भीतर यह अटकाव मूलाधार केंद्र से, काम -केंद्र से, सूर्य केंद्र से आता है। अभी तक इस तरह की कोई समस्या न थी। यहां तक प्रकृति सहयोग कर रही थी, अब तक प्रकृति मां की तरह तुम्हें सम्हाल रही थी। लेकिन अब तुम बड़े हो गए हो, अब तुम बच्चे नहीं हो। और अब ऐसा नहीं हो सकता है कि प्रकृति तुम्हारा खयाल रखे, तुम्हें स्तन पान कराती ही चली जाए। अब मां कहती है, 'स्तन छोड़ो, अपने से आगे बढ़ो।' मां ने तो बहुत पहले ही कह दिया था, जिन्होंने इसे समझ लिया, उन्होंने अपना उत्तरदायित्व सम्हाल लिया और वे सिद्ध हो गए, बुद्ध हो गए, उपलब्ध हो गए। अब आगे के मार्ग का निर्णय हमको स्वयं लेना होगा। अब हमें अपने से आगे बढ़ना होगा। इसकी पूरी की पूरी संभावना मूलाधार केंद्र में निहित है जो ऊर्जा मूलाधार केंद्र से नीचे की ओर जाती है, अब वही ऊर्जा ऊपर की ओर भी जा सकती है। तो आज जो पहली बात समझ लेने की है वह यह है कि तुम