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इसीलिए मैं कहता हूं कि आदमी अभी भी विकसित हो रहा है। मनुष्य अभी जैसा है पूर्णरूप से परितृप्त नहीं है, संतुष्ट नहीं है। अभी उसे परितृप्ति को उपलब्ध करना है, उस परितृप्ति की विशाल कीमिया को अभी उसे पाना है। और इसके लिए हमें स्वयं को विकास की एक बड़ी प्रायोगिक प्रयोगशाला बनाना है और मूलाधार से, काम -केंद्र से अपनी ऊर्जा को सहस्रार की ओर लाना है।
हृदये चित्तसवित।
'हृदय पर संयम संपन्न करने से मन की प्रकृति, उसके स्वभाव के प्रति जागरूकता आती है।
यह भी ठीक अनुवाद नहीं है, लेकिन इसका अनुवाद करना भी कठिन है। अनुवाद करने वाले लोग कठिनाई में पड़ जाते हैं।
हृदये चित्तसवित।
पहली तो बात, जब पतंजलि हृदय शब्द का उपयोग करते हैं तो उनका मतलब भौतिक या शारीरिक हृदय से नहीं है। योग की पारिभाषिक व्याख्या में, ठीक भौतिक हृदय के पीछे ही वास्तविक और सच्चा हृदय छिपा हुआ है। वह भौतिक शरीर का हिस्सा नहीं है। भौतिक हृदय वास्तविक हृदय से, आध्यात्मिक हृदय से जोड़ने का कार्य करता है। उनके बीच एक सिन्क्रानिसिटी, एक समस्वरता है, लेकिन उनके बीच कोई कार्य –कारण का संबंध नहीं है। और उस हृदय को केवल तभी जाना जा सकता है जब शिखर पर पहुंचना हो जाए। जब ऊर्जा सहस्रार के शिखर -बिंदु तक पहुंच जाती है ओमेगा पाइंट तक पहुंच जाती है, तभी केवल सच्चे हृदय का, वास्तविक हृदय का बोध होता है वहीं पर है परमात्मा का सच्चा वास।
हृदये चित्तसवित्।
'हृदय पर संयम एकाग्र करने से मन की प्रकृति, उसके स्वभाव के प्रति जागरूकता आती है।' यह भी ठीक नहीं है। चित्तसवित् का अर्थ होता है चैतन्य का स्वभाव, न कि मन का स्वभाव। मन तो बिदा हो चुका है, बहुत पीछे छूट चुका है, क्योंकि मन या तो सूर्य –मन होता है या चंद्र -मन होता है। जब व्यक्ति सूर्य और चंद्र का अतिक्रमण कर लेता है, तो मन बिदा हो जाता है। असल में चित्तसंवित् अ-मन की अवस्था है।
अगर झेन फकीरों से पूछो तो वे इसे अ -मन कहेंगे। मन बिदा हो जाता है, क्योंकि मन केवल चीजों को विभक्त करके ही रह सकता है, और जब भेद मिट जाता है, तो मन भी मिट जाता है। वे दोनों साथ-साथ ही अस्तित्व रखते हैं, वे एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। मन चीजों को विभक्त करता है और उस विभेद के दवारा ही जीता है-वे दोनों एक दूसरे पर निर्भर हैं, वे एक-दूसरे पर अवलंबित हैं। जब विभेद या विभाजन समाप्त हो जाता है, तो मन भी समाप्त हो जाता है; और जब मन समाप्त हो जाता है तो विभेद या विभाजन भी समाप्त हो जाता है।