Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 04
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 350
________________ मनुष्य अस्तित्व का महानतम प्रयोग है। इसके गौरव के बारे में 'सोचो और इसी के साथ जुड़े उत्तरदायित्व पर ध्यान दो। मनुष्य के ऊपर बहुत कुछ निर्भर है, लेकिन अगर हम सोचते हैं कि हम परमात्मा ही हैं, क्योंकि हमारे पास मनुष्य का शरीर है –तो हम अपने मन के द्वारा गलत निर्देशन में जा रहे हैं। मनुष्य के पास केवल मानव शरीर है; मनुष्य केवल मात्र एक संभावना है। सत्य अभी घटित नहीं हुआ है सत्य अभी घटना है और हमें सत्य को घटित होने देना है। हमें सत्य के प्रति खुले रहना है। योग की पूरी देशना यही है कि ऊर्ध्वगामी होने के लिए, अपने से पार जाने के लिए क्या करना है। ओमेगा –पाइंट, शिखर -बिंदु तक पहुंचने के लिए कैसे सहयोग करना है जिससे कि संपूर्ण ऊर्जा निर्मुक्त होकर, रूपांतरित हो जाए-पदार्थ परमात्मा में, दिव्यता में रूपांतरित हो जाए। योग मनुष्य की पूरी की पूरी अंतर्यात्रा का, तीर्थयात्रा का नक्शा है –काम से समाधि तक का, निम्नतर तल मूलाधार से, विकास की परम ऊंचाई सहस्रार तक का नक्शा है। इससे पहले कि हम इन सूत्रों में प्रवेश करें, इन सबको ठीक से समझ लेना है। योग ने मनुष्य को सात पर्तों में, सात चरणों में, सात केंद्रों में विभक्त किया है। पहला है मूलाधार-काम -केंद्र सूर्य - केंद्र; अंतिम और सातवां है सहस्रार-परमात्मा का केंद्र, ओमेगा पाइंट, शिखर-बिंदु। काम -केंद्र मूलभूत रूप से नीचे की ओर गतिमान है। इसका संबंध भौतिक पदार्थ के साथ है जिसे योग मनुष्य की प्रकृति कहता है, नेचर कहता है। प्रकृति के साथ संबंध ही काम-केंद्र है, उस जगत के साथ संबंध जिसे पीछे छोड़ आए हैं, जो अतीत हो चुका है। अगर व्यक्ति काम केंद्र पर ही रुक जाता है, तो उसका विकास नहीं हो पाता। व्यक्ति वहीं रहेगा जहां कि वह जन्म के समय था। वह अतीत से ही बंधा रहेगा, तब उसका कोई विकास नहीं हो पाएगा, उसका भविष्य से कोई संपर्क नहीं बन पाएगा। व्यक्ति वहीं अटक कर रह जाता है, अधिकांश लोग काम केंद्र में ही अटक कर रह जाते हैं। लोग सोचते हैं कि वे कामवासना के बारे में सब कुछ जानते हैं। काम के संबंध में वे कुछ भी नहीं जानते, कम से कम वे तो कुछ भी नहीं जानते हैं जो समझते है कि जानते हैं -जैसे कि मनस्विद। मनस्विद समझते हैं कि वे सेक्स के बारे में सब कुछ जानते हैं, लेकिन उन्हें सेक्स के बारे में आधारभूत जानकारी भी नहीं होती है। मनुष्य की यह समझ कि कामवासना ऊर्ध्वगामी प्रक्रिया भी बन सकती है, ऐसी कोई अनिवार्यता नहीं है कि उसे केवल नीचे की ओर ही जाना है। कामवासना नीचे की ओर जाती है, क्योंकि नीचे की ओर जाने का कामवासना का स्वभाव मनुष्य के रचनातंत्र में है -पहले से ही मनुष्य की रचना में है। पशु -पक्षी, पेडू -पौधे सभी में भी ऐसा ही होता है, इसमें कोई विशेष बात नहीं है कि कामवासना केवल मनुष्य में ही है। विशेष और महत्व की बात यह है कि में कुछ और भी अस्तित्व रखता है जो कि अभी तक पेड़ -पौधों और पशु -पक्षियों में नहीं मनष्य म कुछ जार

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