________________ घर में पैदा हुआ है, तो वह जीवन भर मोची ही बना रहेगा। फिर कुछ भी हों-चाहे विवाह हो परिवार हो, कार्य हो, लोग जीवन भर उसी परिवार में रहते थे, और एक ही कार्य करते रहते थे। लोग जिस शहर में जन्म लेते थे, वे उसी शहर में ही मर जाते थे, उस शहर से बाहर भी कभी नहीं जाते थे। लाओत्सु ने एक जगह कहा है, 'मैंने सुना है कि पुराने समय में लोग नदी के उस पार नहीं गए थे। वे लोग दूसरी ओर से कुत्तों के भौंकने की आवाजें सुनते थे, नदी के उस पार से आती आवाजें सुनते थे। और वे अनुमान लगाते थे कि उधर जरूर कोई शहर होगा, क्योंकि सांझ को वे लोग दूसरी ओर से धुआं उठता देखते थे -तो लोग जरूर भोजन भी बनाते होंगे। वे कुत्तों का भौंकना सुनते थे, लेकिन उन्होंने उधर जाकर देखने की कभी फिकर नहीं की। लोग एक ही जगह सुख-चैन और शाति से रहा करते थे। यह जो आदमी का मन निरंतर बदलाव चाहता है, वह इतना ही बताता है कि आदमी का मन अशांत है। व्यक्ति कहीं भी, किसी भी जगह अधिक देर तक टिककर नहीं रह पाता है, तब उसका पूरा जीवन ही निरंतर परिवर्तन का जीवन बन जाता है। ठीक वैसे ही जैसे कि किसी वृक्ष को अगर बार-बार पृथ्वी से उखाड़ा जाए और उसे अपनी जड़ों को पृथ्वी में जमाने का मौका ही न मिल सके। तब वृक्ष केवल देखने भर को जीवित रहेगा, वह वृक्ष कभी भी खिल न पाएगा। वैसा संभव ही नहीं है, क्योंकि फूल खिलने के पहले वृक्ष को अपनी जड़ें पृथ्वी में जमानी होंगी। तो एकाग्रता का अर्थ होता है अपनी चेतना को किसी एक विषय पर केंद्रित कर देना और वहीं बने रहने की क्षमता पा लेना-फिर वह विषय कोई भी हो सकता है। अगर आप एक गुलाब के फूल को देखते हैं, तो उसे ही देखते चले जाएं। मन बार - बार इधर -उधर जाना चाहेगा, मन इधर-उधर दौड़ेगा, लेकिन आप मन को फिर से गुलाब के फूल पर ही लौटा लाएं। धीरे - धीरे मन थोड़ा अधिक समय तक गुलाब के साथ होने लगेगा। जब मन अधिक समय तक गुलाब के साथ एक होकर रह सकेगा, तब आप पहली बार जान सकेंगे कि गुलाब क्या है, गुलाब का फूल क्या है। तब आपके लिए गुलाब का फूल केवल मात्र गुलाब का फूल ही नहीं रह जाएगा तब आपको गुलाब के माध्यम से परमात्मा ही मिल जाता है। तब उसमें से उठती सुवास केवल गुलाब की ही नहीं होती, वह सुवास दिव्य की परमात्मा की हो जाती है। लेकिन हम ही हैं कि गुलाब के साथ एक नहीं हो पाते, और उसके अपूर्व सौंदर्य से वंचित रह जाते हैं। किसी वृक्ष के पास जाकर बैठ जाओ और उसके साथ एक हो जाओ। जब अपने प्रेमी या प्रेमिका के निकट बैठो तो उसके साथ एक हो जाओ। और अगर मन इधर-उधर जाए भी, तो स्वयं को वहीं केंद्रित किए रहो। अन्यथा होता क्या है? प्रेम हम स्त्री से कर रहे होते हैं, और सोच किसी और चीज के बारे में रहे होते हैं-शायद उस समय किसी दूसरी ही दुनिया में खो गए होते हैं। प्रेम में भी हम एकाग्रचित्त नहीं हो पाते हैं। तब हम बहुत कुछ चूक जाते हैं। उस क्षण अदृश्य का एक द्वार खुलता