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अधिकाधिक ग्रहणशील और चुंबकीय बनाते हैं, ताकि वह सूर्य – ऊर्जा को अपनी ओर खींच ले। योग है सूर्य – विधि, ताओ और तंत्र चंद्र - विधियां हैं, लेकिन उन दोनों का कार्य एक ही होता है।
योग के सारे आसन सूर्य – ऊर्जा को चंद्र - केंद्र की ओर प्रवाहित करने में सहयोग करते हैं। और ताओ और तंत्र की सभी विधियां चंद्र - केंद्र को इतना चुंबकीय बनाने के लिए हैं, ताकि वह सारी ऊर्जा जो सूर्य- केंद्र द्वारा निर्मित होती है उसे अपनी और खींचकर उसे रूपांतरित कर दें।
इसीलिए तो बुद्ध हों या महावीर पतंजलि हाँ या लाओत्सु, जब वे अपनी पूर्णता में खिलते हैं, तो वे पुरुष की अपेक्षा कहीं अधिक स्त्री जैसे सुकोमल मालूम होते हैं। पुरुष की जो कठोरता होती है, वह उनसे छूट जाती है, वे अधिक स्त्रैण, सरल-सुकोमल हो जाते हैं। उनका शरीर स्त्री जैसा हो जाता है। उनमें स्त्री जैसा लालित्य और प्रसाद आ जाता है उनकी आंखें उनका चेहरा, उनका चलना, उनका बैठना- सभी कुछ स्त्रैण हो जाता है। वे फिर कठोर, आक्रामक, उग्र नहीं रह जाते। चंद्र पर संयम संपन्न करने से तारों -नक्षत्रों की समग्र व्यवस्था का ज्ञान प्राप्त होता है।'
अगर व्यक्ति संयम को, अपने साक्षी भाव को हारा केंद्र तक ले आए, तो वह अपनी देह के भीतर के सभी नक्षत्रों को जान सकता है। - अपने भीतर के सभी केंद्रों को जान सकता है क्योंकि जब व्यक्ति सूर्य – केंद्र पर केंद्रित होता है तो वह इतना उत्तेजित, इतना उत्तप्त होता है कि उसे कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता, उसे स्पष्टता उपलब्ध हो ही नहीं सकती। स्पष्टता उपलब्ध करने के लिए पहले चंद्र-केंद्र तक आना होता है। ऊर्जा - रूपांतरण में चंद्र- केंद्र एक विराट घटना का कार्य करता है।
थोड़ा इसे समझने की कोशिश करें।
आकाश में भी चंद्रमा को ऊर्जा सूर्य से ही मिलती है, फिर चंद्रमा सूर्य की रोशनी को ही प्रतिबिंबित करता है। उसकी अपनी स्वयं की तो कोई ऊर्जा, कोई रोशनी होती नहीं है, वह तो केवल सूर्य की रोशनी को ही प्रतिबिंब करता है। लेकिन फिर भी चंद्रमा सूर्य की रोशनी की गुणवत्ता को पूरी तरह से बदल देता है। चंद्रमा की तरफ देखने से हमें एक तरह की शांति और शीतलता अनुभव होती है, सूर्य की तरफ देखने से उत्तेजना और पागलपन छाने लगता है। चंद्रमा की तरफ देखने से ऐसा लगता है कि जैसे चारों ओर बहुत ही शांति छा गयी हो।
बुद्ध पूर्णिमा की रात को ही संबोधि को उपलब्ध
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असल में जो लोग भी संबोधि को उपलब्ध हुए हैं, वे सभी रात्रि के समय ही संबोधि को उपलब्ध हुए हैं। एक भी आदमी दिन के समय संबोधि को उपलब्ध नहीं हुआ। महावीर रात्रि के समय संबोधि को उपलब्ध हुए। जिस रात महावीर संबोधि को उपलब्ध हुए अमावस की रात थी, चारों ओर पूरी तरह से अंधकार था। और बुद्ध पूर्णिमा की रात संबोधि को उपलब्ध हुए। लेकिन दोनों ही रात के समय संबोधि को उपलब्ध हुए। ऐसा तो कभी हुआ ही नहीं कि कोई भी दिन के समय संबोधि को उपलब्ध