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होगे, और रात सोने में भूल जाते हो कि तुम सम्राट हो। दिन में शायद तुम कोई बड़े संन्यासी होगे जो संसार का त्याग कर चुका है, और रात स्वप्न में सुंदर स्त्रियां तुम्हें घेरे रहती हैं और स्वप्न में तुम भूल जाते हो कि तुम एक संन्यासी हो, कि भिक्षु हो और यह अच्छा नहीं है। दिन में अच्छा या बुरा जो कुछ भी होता है वह रात्रि में सोने पर सब कहीं खो जाता है, रात्रि स्वप्न में; तुम बिलकुल अलग ही व्यक्ति हो जाते हो। तुम्हारी भावदशा बदल जाती है, आसपास का वातावरण बदल जाता है। लेकिन एक बात हमेशा बनी रहती है, वह है द्रष्टा होने की दिन में अगर तुम अपनी गतिविधियों पर ध्यान रख सको, जैसे-सड़क पर चल रहे हो, या भोजन कर रहे हो, या आफिस जा रहे हो, या आफिस से घर लौट रहे हो, क्रोध में हो या प्रेमपूर्ण हों-अगर प्रतिदिन की इन सब छोटी-छोटी गतिविधियों में होशपूर्वक हो सको, उनके द्रष्टा हो सको, तो रात स्वप्न में भी तुम द्रष्टा रह सकते हो, और तब स्वप्न में भी तुम यह जान सकोगे कि यह तो स्वप्न ही है। मैं तो स्वप्न में ही सम्राट था? ठीक है। तब तुम सब चीजों के द्रष्टा हो सकते हो।
चौबीस घंटों में केवल एक ही चीज स्थायी है और वह है द्रष्टा का होना, साक्षी का होना। यही हमारे भीतर का ध्रुवतारा है।
'ध्रुव-नक्षत्र पर संयम संपन्न करने से तारों-नक्षत्रों की गतिमयता का ज्ञान प्राप्त होता है।'
और ध्यान रहे, पहले तो पतंजलि कहते हैं कि चंद्र पर संयम संपन्न करने से तारों -नक्षत्रों की समग्र व्यवस्था का ज्ञान प्राप्त होता है कि कौन सा तारा कहां है, और कैसा है।
'ध्रुव-नक्षत्र पर संयम संपन्न करने से तारों -नक्षत्रों की गतिमयता का ज्ञान प्राप्त होता है।'
क्योंकि गति का अनुभव केवल उसी चीज के परिप्रेक्ष्य में हो सकता है जो थिर होती है। अगर कुछ भी थिर न हो तो गतिशीलता को जाना ही नहीं जा सकता है। और अगर सभी कुछ गतिमान हो और हमारे पास ऐसा कोई आधार न हो जिसकी कोई गति न हो; तो हम गति को कैसे जान सकेंगे?
इसीलिए पृथ्वी लगातार घूमती रहती है, लेकिन हमें उसकी गति का आभास नहीं होता। पृथ्वी घूम रही है, और इतनी तीव्रता से घूम रही है कि हम उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। पृथ्वी एकं अंतरिक्षयान है, जो निरंतर गतिशील है अपने केंद्र पर लगातार घूम रही है और साथ ही सूर्य के चारों ओर भी बड़ी तीव्रता के साथ चक्कर लगा रही है। पृथ्वी लगातार घूमती चली जा रही है, लेकिन उसकी गति को अनुभव नहीं किया जा सकता क्योंकि शेष सभी कुछ भी उसी गति से घूम रहा है पेडूपौधे, घर, आदमी सभी कुछ उसी गति से घूम रहा है। इसलिए उसकी गति को अनुभव करना असंभव है, क्योंकि उसकी तुलना करने का कोई उपाय नहीं. है।
इसे ऐसे सोचो, जैसे तुम्हारे पास खड़े होने को कोई छोटी सी चीज है-सारी पृथ्वी तो घूम रही है, लेकिन तुम नहीं घूम रहे हो -तब तुम समझ सकोगे कि गति क्या है। क्योंकि शेष सभी- चीजें