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3-आप कहते है कि बुद्ध पुरुष कभी स्वप्न नहीं देखते। फिर च्वांगत्सु ने कैसे स्वप्न देखा कि वह तितली है?
4-स्व-निर्भर होने के लिए पतंजलि की विधि या आपकी विधि क्या है?
अध्यात्मिक व्यक्ति ठीक-ठीक वर्तमान के क्षणों में कैसे जी सकता है?
रोज के व्यावहारिक जीवन में क्षण-क्षण, वर्तमान में जीने की आदत कैसे बनायी जाए?
5-क्या राम संबोधि को उपलब्ध हो गया है?
पहला प्रश्न:
क्या संबुद्ध होना और साथ ही संबोधि के प्रति चैतन्य होना संभव है? क्या संबुद्ध होने का विचार स्वयं में अहंकार उत्पन्न नहीं कर देता है? कृपया समझाएं।
पहली बात जो समझ लेने की है वह यह है कि अहंकार क्या है?
अहंकार कोई वास्तविकता नहीं है। असल में तो अहंकार होता ही नहीं है। अहंकार एक विचार मात्र है, एक ऐसा विकल्प है जिसके बिना व्यक्ति का जीना मुश्किल हो जाता है। क्योंकि तुम यह तो जानते ही नहीं हो कि तुम कौन हो, तुम्हें जीने के लिए अपने बारे में एक निश्चित प्रकार की धारणा बनानी पड़ती है, अन्यथा तो तुम विक्षिप्त ही हो जाओगे। तुम्हें अपने लिए कुछ ऐसे संकेत बना लेने पड़ते के जिनसे तुम जान सको – 'ही, मैं यह हूं।'
मैंने सुना है कि एक बार एक मूढ़ आदमी एक नगर में गया। वहां वह एक सराय में ठहरा। और भी बहुत से लोग उस सराय में ठहरे हुए थे, इससे पहले वह इतने सारे लोगों के साथ कभी सोया नहीं था। वह थोड़ा परेशान भी था और घबराया हआ भी था। उसे इस बात का भय था कि अगर वह सो गया तो फिर सुबह जब वह जागेगा तो कैसे जानेगा कि सचमुच में वह स्वयं ही है। इतने सारे लोग, और वह तो सदा अपने कमरे में अकेला ही सोता आया था, इसलिए कभी कोई समस्या ही न उठी थी, क्योंकि किसी गड़बड़ी की कोई संभावना ही न थी। चूंकि वह अकेला सोता आया था तो कोई