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वह तृप्त होता है, पूर्णरूपेण तृप्त होता है। अगर वह भिखारी भी है, तो भी वह इतना तृप्त होता है कि वह अपने भिखारीपन में भी अपना सम्राट होता है।
एक बार ऐसा हुआ कि एक महान सूफी संत था इब्राहिम, वह एक भिखारी के साथ रहता था। इब्राहिम ने अपना राजपाट त्याग दिया था, क्योंकि उसने उसकी व्यर्थता और मूढ़ता को पहचान लिया था। और इब्राहिम एक साहसी आदमी था। वह अपने राज –पाट को छोड़कर भिक्षुक बन गया। एक बार एक भिक्षुक कुछ दिनों के लिए इब्राहिम के पास आकर ठहरा। वह भिक्षु रोज रात्रि को परमात्मा से प्रार्थना करता, 'हे परमात्मा, कुछ तो कृपा करो। आपने मुझको ही इतना गरीब क्यों बनाया? पूरा संसार तो मजे कर रहा है, सुख -चैन, शांति से रह रहा है। बस, एक मैं ही गरीब हूं। मुझे पेट भर खाना भी नसीब नहीं है, पहनने के लिए मेरे पास कपड़े नहीं हैं, रहने को जगह नहीं है। कुछ तो कृपा करो? कई बार तो मुझे शक होने लगता है कि आप हो भी या नहीं, क्योंकि मेरी प्रार्थना अधूरी ही है।' इब्राहिम ने उस भिक्षु की यह प्रार्थना एक बार सुनी, दो बार सुनी, तीन बार सुनी, आखिर में एक दिन जब इब्राहिम से रहा न गया तो वह उस भिक्षु से बोला, 'जरा ठहरो। ऐसा लगता है तुम्हें गरीबी बिना कोई कीमत चुकाए मिल गयी है।' वह भिक्षु बोला, 'गरीबी की कीमत? आपका क्या मतलब है? आप क्या कह रहे हैं? क्या गरीबी की भी कीमत चुकानी पड़ती है?'
इब्राहिम बोला, 'ही, मैंने गरीबी को अपना पूरा राज्य देकर पाया है, और तब मैंने गरीबी के सौंदर्य को जाना है। तुमने तो इसे मुफ्त में ही पा लिया है, इसलिए तुम गरीबी का मजा नहीं जानते हो। गरीबी जो स्वतंत्रता देती है तुम उसे नहीं जानते हो, इसलिए तुम इसकी कीमत और इसके महत्व को नहीं जानते हो। तुम्हें नहीं मालूम कि गरीबी क्या होती है। इसलिए पहले तो आवश्यक है कि तुम अमीर आदमी की पीड़ा को जानो, फिर तुम गरीबी के सौंदर्य को जान पाओगे। मैंने दोनों अवस्थाएं देखी हैं मैं पूरी तरह संतुष्ट हूं।'
इब्राहिम ने कहा, 'सच पूछो तो मैं प्रार्थना भी नहीं कर सकता। क्योंकि मेरे यह समझ में ही नहीं आता है कि मैं प्रार्थना करूं भी तो किस के लिए करूं। ज्यादा से ज्यादा मैं यह कह सकता हूं, 'हे परमात्मा, आपका धन्यवाद।' बस, हो गयी प्रार्थना। कहने, को कुछ है ही नहीं। मैं इतना परितृप्त हूं।' संबुद्ध व्यक्ति स्वप्न नहीं देख सकता ३ वह अपने आप में परितृप्त होता है। और मैं तुम से कहता हं कि वह इतना भी नहीं कहेगा कि 'हे परमात्मा, आपका धन्यवाद।' क्यों परमात्मा को व्यर्थ ही परेशान करना? या फिर वह यह बात एक बार कहेगा, और फिर वह रोज डिट्टो कह देगा। कहने में सार भी क्या है? और सचाई तो यह है, परमात्मा जानता ही होगा कि तुम्हारा पूरा हृदय कह रहा है, 'हे प्रभु, धन्यवाद, तो फिर कहने में सार भी क्या है?
रात जब तुम स्वप्न देखते हो तो तुम अपनी वह छवि भूल जाते हो, जो दिनभर तुम में मौजूद रही। दिन में शायद तुम बड़े विद्वान रहे होंगे, रात सोने में भूल जाते हो। दिन में शायद तुम सम्राट