________________
तक कोई आदमी योगी न हो जाए, वह चिकित्सक भी नहीं हो सकता था। क्योंकि उसके बिना कोई सच्चा चिकित्सक हो नहीं सकता था। इससे पहले कि कोई चिकित्सक किसी रोगी के पास उसकी चिकित्सा करने के लिए जाए, उस चिकित्सक को अपने अंतर्जगत की व्यवस्था को ठीक से समझना और देखना होता था। अगर मृत्यु - केंद्र उसके हाथों में आ गया हो, तो वह नहीं जाएगा। अगर मृत्यु- केंद्र आंखों में हो, तो वह वहा नहीं जाएगा। उस चिकित्सक का मृत्यु केंद्र हारा में स्थित होना चाहिए, और जीवन-केंद्र उसके हाथों में होना चाहिए, तभी वह रोगी को देखने कि लिए जाता था। जब सभी केंद्र अपने-अपने स्थान पर होते थे, तभी वह रोगी को देखने जाता था।
जब व्यक्ति अपने अंतर्जगत को जान लेता है, तो बहुत सी बातें जान सकना संभव हो जाता है। तुमने भी इस पर कई बार ध्यान दिया होगा, लेकिन तुम्हें मालूम नहीं होता है कि क्या हो रहा है। कई बार बिना किसी विशेष प्रयास के सफलता मिलती चली जाती है। और कई बार कठोर परिश्रम करने के बाद भी सफलता नहीं मिल पाती; सभी काम असफल होते चले जाते हैं। इसका मतलब है कि उस समय तुम्हारी अंतर-व्यवस्था ठीक नहीं है। तुम गलत केंद्र से काम कर रहे हो ।
जब कोई योद्धा युद्ध के मैदान में जाता है, युद्ध के मोर्चे पर जाता है, तो उसे तब ही जाना चाहिए जब मृत्यु–केंद्र उसके हाथ में हो । तब तब वह बड़ी आसानी से लोगों को मार सकता है।
तब वह साक्षात मृत्यु का ही रूप धारण कर लेता है। 'बुरी नजर का यही अर्थ होता है वह व्यक्ति जिसका मृत्यु - केंद्र उसकी आंखों में ठहर गया है। अगर ऐसा आदमी किसी की ओर देख भी ले, तो वह मुसीबतो में फंसता चला जाएगा। उसका देखना भी अभिशाप हो जाता है।
-
और ऐसे लोग भी हैं जिनकी आंखों में जीवन केंद्र होता है। वे अगर किसी की तरफ देख भर लें, तो ऐसा लगता है जैसे आशीष बरस गए हों, ऐसे व्यक्ति का देखना और सामने वाला आदमी आनंद से भर जाता है। उसका देखना और सामने वाला व्यक्ति एकदम जीवंत सा हो जाता है।
'ध्रुव-नक्षत्र पर संयम संपन्न करने से तारों-नक्षत्रों की गतिमयता का ज्ञान प्राप्त होता है।"
नाभिचक्रे कायव्यूह ज्ञानम् ।
'नाभि चक्र पर संयम संपन्न करने से शरीर की संपूर्ण संरचना का ज्ञान प्राप्त होता है।'
नाभि केंद्र शरीर का केंद्र है, क्योंकि नाभि केंद्र द्वारा ही व्यक्ति मां के गर्भ में पोषित होता है। नौ महीने केवल नाभि केंद्र के द्वारा ही बच्चा जिंदा रहता है। मां के गर्भ में बच्चा नाभि से जुड़ा रहता है, वही उसके जीवन का स्रोत और सेतु होता है और जब बच्चे का जन्म हो जाता है, और नाभि केंद्र से जुड़ने वाले रन्तु काट दिया जाता है, तो बच्चा मां से अलग होकर एक स्वतंत्र प्राणी हो
जाता है। जहां तक शरीर का संबंध है, नाभि केंद्र बहुत ही महत्वपूर्ण केंद्र है।