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'लाभ कमाने का. मतलब है एक के दो बनाना, व्यापारी ने कहा।
वह पागल बोला, 'यह कोई लाभ कमाना हआ? लाभ तो तब है जब तम दो का एक कर दो।'
वह पागल आदमी कोई साधारण पागल न था, वह जरूर कोई प्रज्ञा -पुरुष रहा होगा। वह सूफी गुरु था।
ही, लाभ तो तभी होता है जब तुम दो का एक कर देते हो। लाभ तभी होता है जहां सारे द्वैत गिर जाते हैं, जहां केवल एक ही बचता है।
'योग' का अर्थ है, एक होने की विधि। योग का अर्थ है, जो कछ अलग-अलग जा पड़ा है उसे फिर से जोड़ना। योग का अर्थ ही है जोड़। योग का अर्थ है, यनिओ मिष्टिका। योग का अर्थ है, एकता। ही, लाभ की प्राप्ति तभी होती है जब हम दो का एक कर सकें।
और योग का पूरा प्रयास ही इसके लिए है कि शाश्वतता को कैसे पा सकें, चीजों के पीछे छिपी एकात्मकता को कैसे पा सकें, सभी परिवर्तनों, सभी गतियों के पीछे छिपी थिरता को कैसे प्राप्त कर सकें – अमृत को कैसे उपलब्ध हो सकें, मृत्यु का अतिक्रमण कैसे कर सकें।
निश्चित ही हमारी आदतें बाधा खड़ी करेंगी, क्योंकि लंबे समय से हम इन्हीं गलत आदतो के साथ जीते आ रहे हैं। हमारे मन का गलत आदतो के साथ तालमेल बैठ गया है-इसी कारण हम हमेशा हर चीज को खंड -खंड में तोड़ देते हैं। आदमी की बुद्धि इसी के लिए प्रशिक्षित हई है कि पहले हर चीज को विभक्त कर दो और फिर चीजों का विश्लेषण करो और एक चीज को बहुत रूपों में विभाजित कर दो। मनुष्य आज तक बुद्धि से ही जीता आया है, और वह भूल ही गया है कि चीजों को कैसे जोड़ना है, कैसे एक करना है।
एक आदमी सूफी फकीर, फरीद के पास एक सोने की कैंची भेंट करने के लिए आया। कैंची सच में ही बहुत सुंदर और मूल्यवान थी। लेकिन फरीद ने जैसे ही उस कैंची को देखा, वे उस कैंची को देखकर जोर से हंस पड़े और बोले, 'मैं इस कैंची का क्या करूंगा, क्योंकि मैं किसी चीज को कभी काटता ही: नहीं हूं। इस कैंची को तुम ही रखो। ही, ऐसा करो, इस कैंची की बजाय तो जुम मुझे एक सुई लाकर दे दो। और सोने की सुई लाने की भी कोई आवश्यकता नहीं है, कोई सी भी सुई चलेगी क्योंकि मेरा सारा प्रयास चीजों को जोड़ने का है, उन्हें एक करने का है।
लेकिन हमारी पुरानी आदतें चीजों को विश्लेषित करने की, चीर -फाड़ करने की हैं। हमारी पुरानी आदतें यही हैं कि उसे खोजना है जो निरंतर परिवर्तनशील है। मन तो हमेशा नए में और परिवर्तन में ही रोमांच का अनुभव करता है। अगर कुछ भी बदले नहीं, सब कुछ वैसा का वैसा ही रहे, तो मन उदास हो जाता है। हमें मन की इन आदतो के प्रति सचेत होना होगा; अन्यथा आदतें तो किसी न किसी रूप में बनी ही रहेंगी. और मन बहुत चालाक है।