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उपाय ही नहीं। और जो खो सकता है वह तुम नहीं हो, जो नहीं खो सकता है वही तुम हो। सभी तरफ से खुले होने से तुम जो कुछ खो दोगे वह तुम्हारा अहंकार होगा। तुम कुछ खो दोगे, लेकिन तुम स्वयं को नहीं खो सकते हो। सच तो यह है, सभी प्रकार का व्यर्थ का कूड़ा-कचरा खोकर पहली बार तुम अपने प्रामाणिक अस्तित्व को सच्चे स्वरूप को उपलब्ध होगे।
इसलिए संबोधि के विषय में मत पूछना । बुद्ध ने कहा है, 'बुद्ध पुरुष केवल मार्ग का संकेत दे सकते हैं। मार्ग के विषय में कोई भी नहीं बतला सकता है।'
मैं तुम्हें पानी तक ले जा सकता हूं, लेकिन तुम मुझसे यह मत पूछना कि जब पानी से प्यास बुझती है तो कैसा अनुभव होता है। उसे मैं कैसे बता सकता हूं? पानी यहां उपलब्ध है। फिर क्यों न पानी का स्वाद ले लो? क्यों न पानी को पी लो? मुझे पीकर तुम अपनी प्यास को बुझा सकते हो और तब तुम जानोगे कि पानी क्या है, पानी को पीकर कैसा अनुभव होता है। पानी का स्वाद तो लिया जा सकता है, लेकिन उसकी व्याख्या नहीं की जा सकती। यह ठीक वैसे ही है जैसे प्रेम होता है अगर तुम कभी किसी के प्रेम में पड़े हो, तो तुम जानते होंगे कि प्रेम क्या होता है लेकिन अगर कोई तुमसे पूछे कि प्रेम क्या है? तो तुम उलझन में पड़ जाओगे, तुम कोई उत्तर न दे सकोगे।
अगस्टीन का प्रसिद्ध कथन है 'मैं जानता हूं कि समय क्या है, लेकिन जब कोई मुझसे पूछता है कि समय क्या है, तो मैं नहीं जानता कि क्या कहूं? हम भी जानते हैं कि समय क्या है और अगर कोई हमसे पूछे समय क्या है, तो उसके विषय में बता पाना कठिन होगा।
मैंने एक महान उपन्यासकार लिओ टालस्टाय के बारे में सुना है कि एक बार जब वह लंदन में था, और उसे अंग्रेजी ज्यादा नहीं आती थी, और वह जानना चाहता था कि समय क्या हुआ है तो उसने एक सज्जन से पूछा, प्लीज टेल मी व्हाट इज टाइम?' वह अंग्रेज अपने कंधे उचकाकर बोला, 'जाकर किसी दार्शनिक से पूछो।'
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व्हाट इज टाइम? तुम कह सकते हो, व्हाट इज दि टाइम? लेकिन तुम यह नहीं कह सकते, व्हाट इज टाइम?' हम समय को जानते हैं, हम उसे अनुभव करते हैं, क्योंकि हम समय में जीते हैं। समय हमेशा विद्यमान है और समय लगातार गुजर रहा है, गुजर रहा है। व्यक्ति समय में ऐसे जीता है जैसे मछली पानी में जीती है, लेकिन फिर भी मछली यह नहीं बता सकती कि पानी क्या है।
मैंने ऐसी एक कथा भी सुनी है कि एक दार्शनिक किस्म की मछली बहुत चिंतित और परेशान थी, क्योंकि उसने सागर के विषय में बहुत दार्शनिक बातें सुन रखी थीं और उसने कभी सागर देखा नहीं था, वह कभी सागर के संपर्क में आयी न थी। इसलिए वह हमेशा सागर के बारे में ही सोचती रहती थी। एक बार राजा मछली आई और उसने उस मछली को ठीक से देखा तो उसे लगा कि जरूर इस मछली के साथ कहीं कुछ गड़बड़ है, यह मछली बहुत चिंतित और परेशान मालूम हो रही है। तो उस राजा मछली ने पूछा, तुम्हें क्या हो गया है? तुम्हारे साथ क्या गलत हो गया है? पूछने पर वह