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कूर्म-नाड़ी नामक नाड़ी पर संयम संपन्न करने से, योगी पूर्ण रूप से थिर हो जाता है।
पतंजलि कोई चिंतक नहीं हैं। वे किसी हवाई और काल्पनिक लोक के दार्शनिक नहीं हैं; वे पूरी तरह
से इस पृथ्वी के हैं और पृथ्वी की ही बात करते हैं। पतंजलि एकदम व्यावहारिक हैं, जैसे कि मैं व्यावहारिकता के लिए कहता हूं। पतंजलि की दृष्टि वैज्ञानिक है। उनकी दृष्टि ही उन्हें दूसरों से अलग खड़ा कर देती है। दूसरे लोग सत्य के विषय में सोचते हैं। पतंजलि सत्य के बारे में सोचते नहीं हैं; वे तो बस इस बात की तैयारी करवाते हैं कि सत्य को ग्रहण कैसे करना, सत्य को ग्रहण करने के लिए ग्राहक कैसे होना।
सत्य सोचने -विचारने की बात नहीं है, सत्य को तो केवल जीया जा सकता है। सत्य तो पहले से ही विदयमान है, उसके विषय में सोचने का कोई उपाय नहीं। जितना ज्यादा हम सत्य के विषय में सोचेंगे, उतने ही हम सत्य से दूर होते चले जाएंगे। सत्य के बारे में सोचना भटकना है। सत्य के बारे में सोचना ऐसे ही है जैसे आकाश में बादल इधर -उधर भटकते रहते हैं, जैसे ही हम सोचते हैं, हम अपने से दूर चले जाते हैं।
सत्य को देखा जा सकता है, उसका विचार नहीं किया जा सकता। पतंजलि का पूरा प्रयास यही है कि सत्य को देखने की स्पष्ट दृष्टि कैसे निर्मित की जाए। निस्संदेह यह बहुत ही कठिन कार्य है, सत्य को देखना कोई कविता करना या मीठे स्वप्न देखना नहीं है। सत्य का साक्षात्कार करने के लिए हमें स्वयं को एक प्रयोगशाला बनाना पड़ता है, अपने पूरे जीवन को एक प्रयोग में रूपांतरित करना पड़ता है-केवल तभी सत्य को जाना जा सकता है, केवल तभी सत्य को पाया जा सकता है। तो पतंजलि के सूत्रों को सुनते समय यह मत भूल जाना कि वे किन्हीं सिद्धांतो की बात नहीं कर रहे हैं : वे हमें सत्य को जानने की विधि दे रहे हैं, जो विधि हमें रूपांतरित कर सकती है, हमें बदल सकती है। लेकिन फिर भी सब हम पर ही निर्भर है।
धर्म में रुचि रखने वाले लोग चार प्रकार के होते हैं। उनमें पहले प्रकार के लोगों की संख्या सर्वाधिक है, उन्हें केवल धर्म के नाम पर कुतूहल होता है। वे धर्म के नाम पर मनोरंजन चाहते हैं, किसी दिलचस्प, मनमोहक, और लभावनी चीज की खोज में होते हैं। पतंजलि ऐसे लोगों के लिए नहीं हैं। क्योंकि जो लोग कुतूहलवश धर्म की तलाश में आते हैं, वे लोग कभी भी इतने गहन रूप से धर्म में रुचि नहीं रखते हैं कि वे अपने जीवन को बदलने के लिए तैयार हो सकें। वह धर्म के नाम पर भी किसी सनसनी की तलाश में होते हैं। पतंजलि उनके लिए नहीं हैं।
फिर हैं दूसरे प्रकार के लोग, जिन्हें हम विदयार्थी कह सकते हैं। वे बौदधिक रूप से धर्म से जुड़े होते हैं वैसे लोग जानना तो चाहेंगे कि पतंजलि क्या कह रहे हैं, क्या बता रहे हैं लेकिन फिर भी उनकी