________________ युवती ने अपनी मां की सलाह के अनुसार ऐसा किया भी। वह उस युवक को अपना धर्म सिखाती रही और इसी बीच विवाह की तिथि भी तय हो गयी। विवाह से एक दिन पहले वह युवती अपने घर आकर जोर -जोर से रोने लगी और अपनी मा से बोली, 'हमारा विवाह टूट गया।' मां ने पूछा, 'क्यों? क्या तुमने उस युवक के दिमाग में अपने धर्म के विचार ठंस -ठंसकर नहीं भरे थे?' इस पर वह युवती अपनी मां से बोली, 'मुझे ऐसा लगता है कि मैंने थोड़ा जरूरत से ज्यादा उसे अपने धर्म की शिक्षा दे दी। अब तो वह युवक पादरी होना चाहता है।' आध्यात्मिकता के सौदागर सदियों -सदियों से उपलब्ध होने की धारणा तुमको बेचते चले आ रहे हैं। धर्म के नाम पर उन्होंने तुम्हारा शोषण किया है। इसे ठीक से समझ लेना। हम वही हो सकते हैं, जो हम हैं, इसके अतिरिक्त और कुछ भी होने की हमारी संभावना नहीं है। यह एक शाश्वत सत्य है, और यह प्रत्येक व्यक्ति को अस्तित्व का दिया हुआ उपहार है। तो आध्यात्मिकता किसी प्रकार की उपलब्धि नहीं है, बल्कि वह तो एक बोध है, एक स्मृति है। हम उसे भूल गए हैं, हमें उसका विस्मरण हो गया है -बस इतनी सी बात है। तुम भी परमात्मा को भूल गए हो, बस इतनी सी बात है। लेकिन परमात्मा हमेशा हमारे भीतर विद्यमान है। और इसी प्रश्न में पूछा है कि 'आपका मार्ग –विहीन मार्ग प्रत्येक व्यक्ति के लिए है या कुछ थोड़े से दुर्लभ लोगों के लिए है?' केवल दुर्लभ लोगों के लिए! लेकिन प्रत्येक व्यक्ति स्वयं में बेजोड़ है, दुर्लभ ही है, अनूठा है। क्योंकि मैंने आज तक एक भी ऐसा आदमी नहीं देखा जो अनूठा न हो, बेजोड़ न हो। मुझे कभी भी साधारण पुरुष या साधारण स्त्री नहीं मिली। मैंने बहुत खोजने की कोशिश की, बहुत लोगों को देखा, क्योंकि मेरे पास बहुत लोग आते हैं, मुझे तो हमेशा बेजोड़ और अनूठे लोग ही मिले हैं, एकदम अनूठे लोग ही मिले हैं। परमात्मा कभी भी एक जैसे दो व्यक्ति नहीं बनाता, वह दोहराता नहीं है, रिपीट नहीं करता। उसका सृजन मौलिक है -वह कार्बन -कॉपी नहीं बनाता है। वह कभी भी एक जैसे दूसरे व्यक्ति की रचना नहीं करता। परमात्मा का सामान्य या साधारण आदमी बनाने में तो भरोसा ही नहीं है। वह तो केवल असाधारण और बेजोड़ लोगों का ही सृजन करता है। थोड़ा इसे समझने की कोशिश करना। क्योंकि समाज हमारे ऊपर निरंतर यह धारणा आरोपित करता रहता है कि तुम तो एक सामान्य से व्यक्ति हो। इसी कारण कुछ थोड़े से लोग स्वयं को असामान्य सिद्ध करने की कोशिश में लगे रहते हैं। और इसे वे केवल तभी सिद्ध कर सकते हैं जब वे दूसरे लोगों को सामान्य सिद्ध कर दें। अब जैसे राजनीतिज्ञ हैं -वे कभी मान ही नहीं सकते कि प्रत्येक