________________ चौथा प्रश्न: मैं विनमतापूर्वक एक प्रश्न करना चाहता हूं और साथ ही निष्ठापूर्वक यह आशा करता हूं कि कल आप इसका उत्तर जरूर देंगे मैं सिंगापुर से आया हूं और जल्दी ही वापस चला जाऊंगा। आज सुबह आपने कहा कि अहंकार ही सबसे बड़ी बाधा है और केवल अहंकार पर विजय प्राप्त कर लेने से या अहंकार का अतिक्रमण करने से ही हम अपने वास्तविक स्वभाव को उपलब्ध हो सकते हैं फिर बाद में आप ने कहा कि काम-वृत्ति पर एकाग्रता ले आने से व्यक्ति सबध हो सकता है। क्या आपको ऐसा नहीं लगता है कि ये दोनों कथन परस्पर विरोधी हैं क्योंकि अगर कोई व्यक्ति कामवासना पर या काम-वृत्ति पर एकाग्र होता है तो वह कर्ता हो जाता है और अहंकारी बन जाता हम तो सोचते हैं कि कामगत इच्छाओं से मुक्त होकर ही हमें लक्ष्य की प्राप्ति हो सकती है मेरी विनम्र प्रार्थना है कि आप इस विषय पर प्रकाश डालेंगे और मेरे मन की भ्रांतियों को मिटाएंगे। यह प्रश्न जरूर किसी भारतीय का होगा। यह प्रश्न है : पी. गंगाराम का। मैं चाहंग के तुम भी इसे खयाल में ले लो कि ऐसा प्रश्न भारतीय का ही हो सकता है, क्योंकि यह प्रश्न भारतीय मन के सारे गुणधर्मों को प्रगट कर देता है। अब इस प्रश्न की एक -एक बात को देखने का प्रयास करना। 'मैं विनम्रतापूर्वक एक प्रश्न करना चाहता है और साथ ही निष्ठापूर्वक यह आशा करता हूं कि आप कल इसका उत्तर जरूर देंगे..।' इन सब बातों की जरा भी जरूरत नहीं है। लेकिन भारतीय मन बहुत औपचारिक है, भारतीय मन ईमानदार नहीं रह गया है। वह सीधा और सरल नहीं है। भारतीय मन हमेशा स्वयं को सिद्धांतो और शब्दों के पीछे छिपाए रहता है। वह लगता जरूर विनम्र है, लेकिन ऐसा है नहीं। क्योंकि विनम्र मन तो सीधा और सरल होता है। तुम्हें अपने को किन्हीं औपचारिकताओं या शिष्टाचार के पीछे नहीं छिपाना है-कम से कम यहां तो ऐसा करने की जरा भी आवश्यकता नहीं है। परमात्मा कोई औपचारिकता नहीं है, और जीवन की समस्याओं को सुलझाने के लिए शिष्टाचार से, किसी भी ढंग से, किसी भी तरह की कोई मदद मिलने वाली नहीं है। इससे तुम्हारी समस्या और परेशानी ही बढ़ेगी।