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बहुत विनम्र हैं।' और भीतर ही भीतर हम मुस्कुराके, अहंकार खूब फूलेगा और संतुष्ट होगा और तब हम कहेंगे, 'अच्छा, तो सम्मान देने वाले आ ही गए।'
ध्यान रहे, किसी भी चीज पर विजय प्राप्त कर लेना उसका अतिक्रमण नहीं है।
'आज सुबह आपने कहा कि अहंकार ही सबसे बड़ी बाधा है, और केवल अहंकार पर विजय प्राप्त कर लेने से या अहंकार का अतिक्रमण करने से ही हम।'
विजय और अतिक्रमण के बीच 'या' शब्द का उपयोग कभी मत करना, क्योंकि वे दोनों अलग-अलग घटनाएं हैं, नितांत भिन्न घटनाएं हैं।
.....हम अपने वास्तविक स्वभाव को उपलब्ध हो सकते हैं।'
'फिर बाद में आपने कहा कि काम -वृत्ति पर एकाग्रता ले आने से।'
मैंने ऐसा कभी नहीं कहा। मैंने संयम कहा-केवल 'एकाग्रता' की बात नहीं की। संयम तो एकाग्रता, ध्यान, समाधि, आनंद का जोड़ है -उसमें तो सभी कुछ समाहित है। इस तरह से तुमको जो सुनना होता है, वह तुम सुन लेते हो। मुझे एक ही बात को कई – कई बार दोहराना पड़ता है, तो भी तुम चुकते ही चले जाते हो।
अगर तुम्हें कल का स्मरण हो, तो मैंने 'संयम' शब्द को बार -बार दोहराया था, और मैंने यह समझाने की कोशिश की कि इसका क्या मतलब होता है। इसका मतलब केवल एकाग्रता ही नहीं होता। एकाग्रता तो संयम का पहला चरण है। दूसरा चरण ध्यान है। ध्यान में एकाग्रता गिर जाती है। उसे गिराना ही होता है, क्योंकि जब आगे की सीडी पर कदम रखना हो तो पीछे की सीढ़ी पर रखा कदम उठाना ही पड़ता है, अन्यथा आगे कदम कैसे बढ़ाओगे? जब आगे की सीढ़ियां चढ़नी हों, तो पीछे की कई सीढ़ियां छोड़नी भी पड़ती हैं। पहला सोपान दूसरे सोपान के आने तक स्वयं ही छूट जाता है, एकाग्रता ध्यान में गिर जाती है। धारणा ध्यान में समा जाती है। और फिर आता है तीसरा चरण. समाधि, आनंद। जब ध्यान भी छूट जाता है, तब व्यक्ति समाधि को उपलब्ध हो जाता है। और इन तीनों अवस्थाओं को ही संयम के नाम से पुकारा जाता है।
जब व्यक्ति काम -वासना पर संयम ले आता है, तो ब्रह्मचर्य फलित होता है –लेकिन केवल एकाग्रता से ब्रह्मचर्य फलित नहीं होता है।
'फिर बाद में आपने कहा कि काम-वृत्ति पर एकाग्रता ले आने से व्यक्ति सबुद्ध हो सकता है।'
हां, किसी आवेग पर संयम ले आने से, व्यक्ति उससे मुक्त हो सकता है। क्योंकि समाधि की गहराई से प्रज्ञा का आविर्भाव होता है -और केवल प्रज्ञा ही व्यक्ति को मुक्त कर सकती है। और प्रज्ञावान को जरूरत ही नहीं होती कि वह अपना बचाव करे या उससे बचकर दूर भागे। फिर व्यक्ति उसका