________________ अपनी - अपनी जगह हैं, क्योंकि अतत: दोनों हैं तो मन ही; और पूरी मनुष्य जाति इन दो रूपों में विभक्त है। तुमको विरोधाभास इसलिए दिखायी पड़ता है, क्योंकि तुम पूरे के पूरे मन को नहीं समझ सकते। लेकिन इन दोनों मार्गों द्वारा-चाहे इनमें से कोई भी मार्ग चुनो, चाहे कोई सा भी मार्ग चुनो, अंततः तुम टोटल हो जाओगे, समग्र हो जाओगे, और शनै: -शनै: समग्र मन खिल उठेगा। तीसरा प्रश्न: प्यारे भगवान रामकृष्ण ने भोजन का उपयोग शरीर में रहने के लिए खूटी की भांति किया। क्या शरीर में बने रहने के लिए केवल करुणा का आकर्षण ही पर्याप्त नहीं होता है? कृपया व्यक्तिगत प्रश्न पूछने के लिए मुझे माफ करें। क्या आप बताएंगे कि आप शरीर में बने रहने के लिए किस खूटी का उपयोग करते हैं? पहली तो बात, करुणा पर्याप्त नहीं है। क्योंकि करुणा अपने आप में इतनी विशुद्ध, इतनी पवित्र होती है कि उसके द्वारा कोई खूटी बनाना संभव नहीं है। करुणा इतनी निर्मल, इतनी पवित्र, इतनी विशुद्ध होती है कि पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति उस पर कोई काम नहीं कर सकती है। इसलिए पृथ्वी पर बने रहने के लिए व्यक्ति को किसी पदार्थ का ही सहारा लेना पड़ेगा। शरीर को भौतिक पदार्थ चाहिए ही, क्योंकि शरीर पृथ्वी का ही हिस्सा है। जब कोई व्यक्ति मरता है तो पदार्थ पृथ्वी में मिल जाता है -मिट्टी मिट्टी में मिल जाती है। तो शरीर में बने रहने के लिए मात्र करुणा ही पर्याप्त नहीं होती है। सच तो यह है जिस दिन व्यक्ति में करुणा का जन्म होता है, व्यक्ति शरीर छोड़ने के लिए तैयार हो जाता है। करुणा व्यक्ति को एक अलग ही आकर्षण -शक्ति की ओर खींचती है-वह आकर्षण कहीं असीम से, किसी ऊंचाई से, ऊपर से आता है। तो जब करुणा का जन्म होता है, तो व्यक्ति किसी परम ऊंचाई की ओर खिंचने लगता है। उसके लिए शरीर में बने रहना लगभग असंभव ही हो जाता है। नहीं, अगर इस धरती पर बने रहना है तो इतनी परिशुद्धता काम न देगी। पृथ्वी से और शरीर से जुड़े रहने के लिए थोड़ी अशुद्धि, थोड़ी अपवित्रता चाहिए ही, कुछ भौतिक चाहिए ही। भोजन इसके लिए एकदम ठीक है। भोजन पृथ्वी का ही अंग है, भोजन पदार्थ का ही रूप है। तो इस पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से बंधे रहने के लिए भोजन व्यक्ति को वजन दे सकता है।