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'आज सुबह आपने कहा कि अहंकार ही सबसे बड़ी बाधा है, और केवल अहंकार पर विजय प्राप्त कर लेने से या अहंकार का अतिक्रमण करने से ही हम अपने वास्तविक स्वभाव को उपलब्ध हो सकते
पहली तो बात, तुमने कुछ ऐसा सुन लिया है जो मैंने कहा ही नहीं है। यह भी भारतीय मन की आदत है। भारतीय मन के लिए जो कुछ कहा जाता है उसे ही सुन पाना कठिन होता है। उसके मन में पहले से ही अपने विचार भरे होते है, सच तो यह है ढेर से 'विचार भरे रहते हैं। उसके पास अपना दर्शन, अपना धर्म, अपनी बड़ी भारी प्राचीन परंपरा, और इसी तरह का बहत व्यर्थ का कूड़ा-कचरा भरा हआ है, और फिर वह सभी को अपने ही व्यर्थ के कडे -कचरे में मिलाए चला जाता है।
अब, मैंने तो तुम से कहा था कि व्यक्ति रूपांतरित हो सकता है, लेकिन यह तो नहीं कहा कि विजित हो सकता है।
अब ये सज्जन कह रहे हैं कि 'आपने कहा कि अहंकार ही बाधा है, और केवल उस पर विजय पाकर ही या उसका अतिक्रमण करके ही।'
वे पर्यायवाची नहीं हैं। किसी भी चीज पर विजय पाना दमन करना है 'विजय प्राप्त कर लेना।' किसी के ऊपर कुछ भी जबर्दस्ती आरोपित कर देना हिंसा है, फिर चाहे वह हम स्वयं ही क्यों न हों। यह तो फिर स्वयं के साथ ही संघर्ष करना है। और जब भी संघर्ष उठ खडा होता है तो अहंकार का अतिक्रमण संभव नहीं है, क्योंकि अहंकार तो संघर्ष के बल पर ही जिंदा रहता है। तो विजय से अहंकार कभी हारता नहीं है। जितना अधिक जीतने का प्रयास करो, उतना ही अधिक व्यक्ति अहंकारी हो जाता है।
निस्संदेह, अब जो अहंकार होगा वह धार्मिक अहंकार होगा, पवित्र होगा। और ध्यान रहे, जितना अहंकार पवित्र बनता चला जाता है, उतना ही अधिक वह सूक्ष्म और खतरनाक होता चला जाता है। तब वह शुद्ध जहर बन जाता है।
तो किसी भी चीज पर विजय प्राप्त कर लेना कोई रूपांतरण नहीं है। तो फिर क्या भेद है?
रूपांतरण समझ से आता है, और विजय संघर्ष के दवारा प्राप्त होती है। व्यक्ति लड़ता है, झगड़ता है, दूसरे को जबर्दस्ती झुकाने की कोशिश करता है, दूसरे की छाती के ऊपर चढ़कर बैठ जाता है, उसके लिए कुश्ती लड़ता है, वह किसी भी तरह विजय प्राप्त कर लेना चाहता है। लेकिन उसमें अहंकार तो पहले से ही मौजूद रहता है, और इस तरह से व्यक्ति एक तरह के जाल में उलझता चला जाता है। अब उसे छोड़ा भी नहीं जा सकता, क्योंकि जिस क्षण तुम उसे छोड़ोगे, वह फिर तुम पर सवार हो
जाएगा।