________________ दूसरा प्रश्न: पतंजलि कहते हैं कि व्यक्ति अज्ञान के कारण अज्ञान एकत्रित करता चला जाता है कर्मों को संचित करता चला जाता है। और हम आप से सुनते आए हैं कि जब तक व्यक्ति एक सुनिश्चित क्रिस्टलाइजेशन को नहीं उपलब्ध हो जाता है तब तक वह अपने कर्मों के लिए उत्तरदायी नहीं होता है-इसके विपरीत कर्ता तो परमात्मा होता है वही उत्तरदायी भी होता है। कृपया क्या आप इन विरोधाभासी जैसी दिखने वाली बातों को स्पष्ट करेंगे? बातें तुम्हें विरोधाभासी मालूम होती हैं। इन विरोधाभासी जैसी दिखने वाली बातों को स्पष्ट करने की जगह मैं तुम्हें स्पष्ट करना चाहूंगा। मैं तुम्हें पूरी तरह से साफ करना चाहूंगा कि तुम वहा बचो ही नहीं। तब तुमको कहीं कोई विरोधाभास दिखायी नहीं पड़ेगा। विरोधी बातें हमें बुद्धि के द्वारा ही दिखायी पड़ती हैं। जब बुद्धि बीच में नहीं आती और दृष्टि साफ -स्वच्छ, शुद्ध होती है-जब चेतना में विचार की कोई तरंग नहीं उठती, हम संयम की अवस्था में होते हैं, पूर्णरूप से खाली होते हैं तब हमको कभी कहीं कोई विरोधाभास दिखाई नहीं पड़ेगा। तब सभी विरोधी बातें एक-दूसरे की पूरक मालूम होंगी। और वे एक-दूसरे की पूरक होती भी हैं। लेकिन हमारे मन को प्रशिक्षण बुद्धिजीवियों के द्वारा, तार्किक लोगों के द्वारा और अरस्तू जैसे लोगों के द्वारा मिला है। हमको चीजों को एक-दूसरे के विपरीत बांटना सिखाया गया है-दिन और रात, जीवन और मृत्यु, अच्छा और बुरा, परमात्मा और शैतान, पुरुष और स्त्री-अलग - अलग खानों में विभक्त करना सिखाया गया है। तो अगर मैं यह कहूं कि प्रत्येक स्त्री के भीतर पुरुष छिपा है और प्रत्येक पुरुष के भीतर स्त्री छिपी है, तो तुम तुरंत कह उठोगे, 'ठहरो, यह तो एक -दूसरे के विरोधी बात है, यह तो एक-दूसरे के विपरीत बात है। पुरुष कैसे स्त्री हो सकता है, और स्त्री कैसे पुरुष हो सकती है? पुरुष पुरुष है और स्त्री स्त्री है-एकदम सीधी साफ तो बात है।'