________________ तो जिस केंद्र से व्यक्ति प्राणों को छोड़ता है, व्यक्ति का निर्मुक्ति देने वाला बिंदु-स्थल खुल जाता है। उस बिंदु-स्थल को देखा जा सकता है। किसी दिन जब पश्चिमी चिकित्सा विज्ञान योग के शरीर-विज्ञान के प्रति सजग हो सकेगा, तो यह भी पोस्टमार्टम का हिस्सा हो जाएगा कि व्यक्ति कैसे मरा। अभी तो चिकित्सक केवल यही देखते हैं कि व्यक्ति की मृत्यु स्वाभाविक हुई है, या उसे जहर दिया गया है, या उसकी हत्या की गयी है, या उसने आत्महत्या की है-यही सारी .साधारण सी बातें चिकित्सक देखते हैं। सबसे आधारभूत और महत्वपूर्ण बात को चिकित्सक चूक ही जाते हैं, जो कि उनकी रिपोर्ट में होनी चाहिए कि व्यक्ति के प्राण किस केंद्र से निकले हैं काम केंद्र से निकले हैं, हृदय केंद्र से निकले हैं, या सहस्रार से निकले हैं -किस केंद्र से उसकी मृत्यु हुई है। और इसकी संभावना है, क्योंकि योगियों ने इस पर बह त काम किया है। और इसे देखा जा सकता है, क्योंकि जिस केंद्र से प्राण-ऊर्जा निर्मुक्त होती है वही विशेष केंद्र टूट जाता है। जैसे कि कोई अंडा टूटता है और कोई चीज उससे बाहर आ जाती है, ऐसे ही जब कोई विशेष केंद्र टूटता है, तो ऊर्जा वहा से निर्मुक्त होती है। जब कोई व्यक्ति संयम को उपलब्ध हो जाता है, तो मृत्यु के ठीक तीन दिन पहले वह सजग हो जाता है कि उसे कौन से केंद्र से शरीर छोड़ना है। अधिकतर तो वह सहस्रार से ही शरीर को छोड़ता है। मृत्यु के तीन दिन पहले एक तरह की हलन -चलन, एक तरह की गति, ठीक सिर के शीर्ष भाग पर होने लगती है। यह संकेत हमें मृत्यु को कैसे ग्रहण करना, इसके लिए तैयार कर सकते हैं। और अगर हम मृत्यु को उत्सवपूर्ण ढंग से, आनंद से, अहोभाव से नाचते -गाते कैसे ग्रहण करना है, यह जान लें -तो फिर हमारा दुबारा जन्म न होगा। तब इस संसार की पाठशाला में हमारा पाठ पूरा हो गया। इस पृथ्वी पर जो कुछ भी सीखने को है उसे हमने सीख लिया है। अब हम तैयार हैं किसी महान लक्ष्य महाजीवन और अनंत-अनंत जीवन के लिए। अब ब्रह्मांड में, संपूर्ण अस्तित्व में समाहित होने के लिए हम तैयार हैं। और इसे हमने अर्जित किया है। इस सूत्र के बारे में एक बात और। क्रियामान कर्म, दिन -प्रतिदिन के कर्म, वे तो बहुत ही छोटे - छोटे कर्म होते हैं, आधुनिक मनोविज्ञान की भाषा में हम इसे 'चेतन' कह सकते हैं। इसके नीचे होता है प्रारब्ध कर्म, आधुनिक मनोविज्ञान की भाषा में हम इसे 'अवचेतन' कह सकते हैं। उससे भी नीचे होता है संचित कर्म, आधुनिक मनोविज्ञान की भाषा में इसे हम 'अचेतन' कह सकते हैं। साधारणतया तो आदमी अपनी प्रतिदिन की गतिविधियों के बारे में सजग ही नहीं होता है, तो फिर प्रारब्ध या संचित कर्म के बारे में कैसे सचेत हो सकता है? यह लगभग असंभव ही है। तो तुम दिनप्रतिदिन की छोटी -छोटी गतिविधियों में सजग होने का प्रयास करना। अगर सड़क पर चल रहे हो, तो सड़क पर सका होकर, होशपूर्वक चलना। अगर भोजन कर रहे हो, तो सजगता पूर्वक करना। दिन