________________ में जो कुछ भी करो, उसे होशपूर्वक, सजगता से करना। कुछ भी कार्य करो, उस कार्य में पूरी तरह से डूब जाना, उसके साथ एक हो जाना। फिर कर्ता और कृत्य अलग - अलग न रहें। फिर मन इधरउधर ही नहीं भागता रहे। जीवित लाश की भांति कार्य मत करना। जब सड़क पर चलो तो ऐसे मत चलना जैसे कि किसी गहरे सम्मोहन में चल रहे हो। कुछ भी बोलो, वह तुम्हारे पूरे होश सजगता से आए, ताकि तुम्हें फिर कभी पीछे पछताना न पडे। जब तुम कहते हो, 'मुझे खेद है, मैंने वह कह दिया जिसे मैं कभी नहीं कहना चाहता था, तो इससे इतना ही पता चलता है कि तुम सोए-सोए, मूर्छा में थे। तुम होश में न थे, जागे हुए न थे। जब तुम कहते हो, 'मेरे से गलत हो गया, मुझे नहीं मालूम क्यों और कैसे हो गया।' मुझे नहीं मालूम कि ऐसा कैसे हुआ, ऐसा मेरे बावजूद हो गया। तब स्मरण रहे, तुमने सोए-सोए, मूर्छा में ही कृत्य किया है। तुम नींद में चलने वाले रोगी की तरह हो तुम सोम्नाबलिस्ट हो। स्वयं को अधिक जागरूक और होशपूर्ण होने दो। यही है अभी और यहीं का अर्थ। इस समय तुम मुझे सुन रहे हो तो तुम केवल कान भी हो सकते हो, सुनना मात्र ही हो सकते हो। इस समय तुम मुझे देख रहे हो तो तुम केवल आंखें भी हो सकते हो –पूरी तरह से सजग, एक विचार भी तुम्हारे मन में नहीं उठता है, भीतर कोई अशांति नहीं, भीतर कोई धुंध नहीं, बस मुझ पर केंद्रित हो –समग्ररूपेण सुनते हुए, समग्ररूपेण देखते हुए –मेरे साथ अभी और यहीं पर हो यह है प्रथम चरण। अगर तुम इस प्रथम चरण को उपलब्ध कर लेते हो, तो फिर दूसरा चरण अपने से सुलभ हो जाता है, तब तुम अवचेतन में उतर सकते हो। तो फिर जब कोई तुम्हारा अपमान करता है, तो जिस समय तुम्हें क्रोध आया, जागरूक हो जाओ। जब किसी ने तुम्हारा अपमान किया- और क्रोध की एक छोटी सी तरंग, जो कि बहुत ही सूक्ष्म होती है, तुम्हारे अस्तित्व के अवचेतन की गहराई में उतर जाती है। अगर तुम संवेदनशील और जागरूक नहीं हो, तो तुम उस उठी हुई सूक्ष्म तरंग को पहचान न सकोगे -जब तक कि वह चेतन में न आ जाए, तुम उसे नहीं जान सकोगे। वरना धीरे -धीरे तुम सूक्ष्म बातों को, भावनाओं को सूक्ष्म तरंगों के प्रति सचेत होने लगोगे -वही है प्रारब्ध, वही है अवचेतन। और जब अवचेतन के प्रति सजगता आती है, तो तीसरा चरण भी उपलब्ध हो जाता है। जितना अधिक व्यक्ति का विकास होता है, उतने ही. अधिक विकास की संभावना के दवार खुलते चले जाते हैं। तीसरे चरण को, अंतिम चरण को, देखना संभव है। जो कर्म अतीत में संचि थे, अब उनके प्रति सजग हो पाना संभव है। जब व्यक्ति अचेतन में उतरता है –तो इसका अर्थ है कि वह चेतना के प्रकाश को अपने अस्तित्व की गहराई में ले जा रहा है -व्यक्ति संबोधि को उपलब्ध हो जाएगा। सबद्ध होने का अर्थ यही है कि अब कुछ भी अंधकार में नहीं है। व्यक्ति का अंतस्तल का कोना -